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________________ इष्टोपदेश ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम 'इष्टोपदेश' है। इष्टोपदेश का मतलब है-'इष्ट+उपदेश' । इष्ट का अर्थ है-हित, सुख या मोक्ष और उपदेश का अर्थ है उसे समझानेवाला शास्त्र। इस प्रकार इष्टोपदेश का अर्थ है-मोक्ष का उपदेश, उत्तम उपदेश, हितकारी उपदेश। इस ग्रन्थ में आत्मा के हित का उत्तम उपदेश दिया है, इसलिए इसका नाम 'इष्टोपदेश' है। ग्रन्थकार का परिचय 'इष्टोपदेश' की रचना आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व आचार्य पूज्यपाद ने की थी। आचार्य पूज्यपाद बहुत ही विद्वान और अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। आचार्य पूज्यपाद का वास्तविक नाम देवनन्दि था, लेकिन वे इतने महान थे कि दुनिया उनको पूज्यपाद अर्थात् जिनके चरण पूजनीय है ऐसे पूज्य चरण (पूज्यपाद) के नाम से जानने लगी। इनका समय छठी शती के मध्यकाल का माना जाता है। आपने मनशुद्धि, वचनशुद्धि और कायशुद्धि तीनों के लिए ग्रन्थों की रचना की थी। उन्होंने मनशुद्धि के लिए इष्टोपदेश और समाधितन्त्र जैसे आध्यात्मिक ग्रन्थ लिखे, वचनशुद्धि के लिए जैनेन्द्र व्याकरण ग्रन्थ लिखा है और कायशुद्धि लिए आयुर्वेद के ग्रन्थ लिखे हैं। तत्त्वार्थसूत्र पर इनके द्वारा लिखित 'सर्वार्थसिद्धि' टीका बहुत प्रसिद्ध है। ग्रन्थ का महत्त्व 1. 'इष्टोपदेश' ग्रन्थ जैन धर्म का एक महान आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इष्टोपदेश :: 181
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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