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नवाँ अध्याय ( 47 सूत्र) नवें अध्याय में संवर और निर्जरा तत्त्वों का वर्णन है। आस्रव का निरोध संवर है। संवर 3 गुप्ति, 5 समिति, 10 धर्म, 12 अनुप्रेक्षा, 22 परिषह और 5 चारित्र से होता है। इस अध्याय में संवर का स्वरूप, संवर के हेतु, गुप्ति, समिति, दशधर्म, द्वादश अनुप्रेक्षा, बाईस परीषह और पाँच चारित्र आदि बतलाए हैं।
निर्जरा तप से होती है। तप दो प्रकार का है-बहिरंग तप और अंतरंग तप। इन दोनों के छह-छह प्रकार हैं। इस प्रकार बारह तप और उनके भेद-प्रभेद का वर्णन इस अध्याय में है। अध्याय के अन्त में ध्यान का स्वरूप, काल, ध्याता, ध्यान के भेद एवं पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थ साधुओं का वर्णन आया है।
दसवाँ अध्याय (१ सूत्र) इन नौ सूत्रों में मोक्षतत्त्व का वर्णन किया है। चार घातिया कर्मों के नष्ट हो जाने से केवलज्ञान उत्पन्न होता है, अरिहन्त अवस्था की प्राप्ति होती है। इसके बाद शेष कर्मों के भी नाश हो जाने से जीव पूर्ण मुक्त हो जाता है। सिद्ध हो जाता है। वह लोक के अग्रभाग तक ऊर्ध्वगमन करता हुआ स्थित हो जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र में सात तत्त्व के प्रयोजन से जैनदर्शन के अधिकांश विषय समाहित हो गये हैं और उनके अध्ययन से पाठक को जैनदर्शन की पर्याप्त जानकारी उपलब्ध हो जाती है। अतः उपवास का फल प्राप्त करने के लिए और सम्पूर्ण तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के लिए इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करें। तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ जैन सिद्धान्त की कुंजी है।
180 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय