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आदि की शक्ति है।
इसके बाद पाँच इन्द्रियाँ, उनके प्रकार, मृत्यु और जन्म के बीच की स्थिति, जन्म के प्रकार, उनकी योनियाँ, जीवों में जन्मों का विभाग, शरीर के भेद, उनके स्वामी, लिंग का विभाग और जीव की आयु आदि अनेक विषयों का सरल वर्णन इस अध्याय में किया है। तीसरा अध्याय (39 सूत्र) तीसरे अध्याय में 39 सूत्रों में अधोलोक और मध्यलोक का वर्णन है। अधोलोक में 7 नरक हैं, जिनमें नारकी जीव बहुत लम्बे समय तक रहते हैं। इन नरकों में अशुभ शरीर और अशुभ परिणामों को सहते हुए बहुत दुख सहन करना पड़ता है। पहले नरक से ज्यादा दुख दूसरे नरक में है। दूसरे नरक से ज्यादा तीसरे में है। इस तरह क्रमश: नरकों में ज्यादा दुख सहन करने पड़ते हैं। इसी तरह पहले नरक में सबसे कम आयु होती है, बाद के नरकों में आयु क्रमश: अधिक बढ़ती जाती है। सातवें नरक में सबसे अधिक समय तक रहना पड़ता है। सबसे अधिक आयु सातवें नरक में होती है।
इस तरह इस अध्याय में सातों पृथिवियाँ, सातों नरकों की संख्या, नारकी जीवों की दशा एवं उनकी दीर्घ आयु आदि अनेक बातों का वर्णन किया है।
मध्यलोक में अनेक द्वीप-समुद्र हैं जो सभी वलयाकार हैं। इन्हीं में भरत, ऐरावत, विदेह आदि अनेक क्षेत्र हैं और गंगा, सिन्धु आदि नदियाँ भी हैं। इस तरह इस अध्याय में मध्यलोक के द्वीप, समुद्र, पर्वत, नदियों एवं क्षेत्रों का वर्णन किया है साथ ही मनुष्य और तिर्यंचों की आयु भी बतलाई है। चौथा अध्याय ( 42 सूत्र) चौथे अध्याय में ऊर्ध्वलोक (देवलोक) का वर्णन किया है। देव चार प्रकार के हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक।
1. भवनवासी देव : भवनवासी देव अपने भवनों में रहते हैं, इन भवनों को हम नहीं देख सकते। यह भवन पृथ्वी के नीचे भी पाए जाते हैं। भवनवासी देव के असुर कुमार, नाग कुमार, विद्युत कुमार, सुपर्ण कुमार, अग्नि कुमार, वात कुमार, स्तनित कुमार, उदधि कुमार, द्वीप कुमार और दिक् कुमार-ये दस प्रकार हैं। 2. व्यन्तर देव : दुनिया में भूत, प्रेत जिसे कहते हैं, वे व्यन्तर देव हैं। वे
तत्त्वार्थसूत्र :: 177