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________________ क्योंकि इसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श- ये गुण होते हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य अमूर्तिक हैं, क्योंकि इनमें ये गुण नहीं पाए जाते हैं। 1. पुद्गल द्रव्य : जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण मुख्य रूप से पाया जाए, वह पुद्गल है। जिसको हम इन्द्रियों से जानते हैं, जिसमें पूरण-गलन होता है, जो घटता-बढ़ता हो, वह पुद्गल है। जीव में तोड़फोड़ नहीं होती। अजीव में तोड़फोड़ होती है। पुद्गल के अनेक रूप हैं। शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, आकार, टुकड़े, अन्धकार, छाया, उद्योत और आतप (ऊष्ण प्रकाश) ये दस पुद्गल की पर्यायें हैं। आज विज्ञान इन बातों पर जोर दे रहा है, पर हजार वर्ष पहले ही जैन आचार्यों ने यह वैज्ञानिक बात सिद्ध की थी कि शब्दादि को हम समझ सकते हैं, पकड़ सकते हैं, वह पुद्गल है। 2- 3. धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य : इस दुनिया में दो चीजें पाई जाती हैं- धर्म और अधर्म । जो जीव को गमन करने में सहायता करता है, वह धर्मद्रव्य है । जैसे— मछली, जल के बिना नहीं रह सकती, मछली हजार फुट ऊपर से नीचे गिरनेवाले जल के सहारे ऊपर चढ़ सकती है एवं जल के तीव्र वेग के बीच में रुक भी सकती है। इसी तरह जब यह जीव ऊर्ध्वगमन करता है, वह जल में मछली की भाँति ऊपर को चढ़ता है। उसमें धर्मद्रव्य सहायक होता है । जो जीव को रुकने में सहायता करता है, वह अधर्म द्रव्य है । जैसे - वृक्ष की छाया हमेशा वृक्ष के नीचे आस-पास ही रहती है। जब पथिक छाया का स्थान देखकर रुकना चाहे तो रुक सकता है। यदि रुकना न चाहे तो छाया पथिक को नीचे से निकलने पर रोकती नहीं है। जिस प्रकार छाया रुकते हुए पथिक को रोकने में सहायक है, उसी प्रकार अधर्म द्रव्य रुकते हु जीव और पुद्गल रोकने में सहायक है। 4. आकाश द्रव्य : जीवादि पाँच द्रव्यों को रहने के लिए जो अवकाश या स्थान देता है, उसे आकाश कहते हैं । आज विज्ञान भी आकाश के बारे में खोज कर रहा है। आकाश और स्पेस ( जगह, स्थान) के बारे में आचार्य 1000 वर्ष पहले ही इस ग्रन्थ में लिख चुके हैं। यह बहुत बड़ी वैज्ञानिक खोज जैन आचार्य की है कि आकाश या स्पेस कभी खत्म नहीं होता है। जिस प्रकार एक गिलास को पानी से पूरा भर दो। लोग समझते हैं कि अब इसमें कोई जगह या स्थान नहीं बचा है । पर अभी भी इसमें भरपूर स्थान खाली 166 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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