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3. 'द्रव्यसंग्रह' ग्रन्थ विद्वानों की रुचि का विषय है, अतः इस पर आलेख, सेमिनार, संगोष्ठियाँ, शोधपत्र एवं शोधकार्य भी होते रहते हैं ।
4. जैन दर्शन के प्रथमानुयोग के विषय को छोड़कर शेष सारे विषयों करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग का सार इस ग्रन्थ में समाहित है । यहाँ तक कि तत्त्वमीमांसा, आचारमीमांसा, व्रत, समिति और योग के विषय भी इस ग्रन्थ में समाहित हैं ।
5. सबसे बड़ी बात यह है कि यह ग्रन्थ सरल एवं संक्षिप्त है।
6. यह एक वैज्ञानिक ग्रन्थ है। जिन विषयों को विज्ञान अभी सिद्ध कर रहा है, उन विषयों को एक हजार वर्ष पहले ही आचार्य इस ग्रन्थ में बता चुके हैं। जैसे- जीव, पुद्गल, स्पेस (आकाश) के बारे में, काल (समय) के बारे में, और ध्यान आदि के बारे में ।
7. यह एक क्रान्तिकारी रचना है । समग्र जैन समाज को 1000 वर्ष पहले इस ग्रन्थ ने अभूतपूर्व योगदान दिया था। इस ग्रन्थ की बहुत बड़ी महिमा यह है कि लाखों लोग इस ग्रन्थ को पढ़ चुके हैं।
8. भारतीय दर्शन की तत्त्व व्यवस्था के साथ मिलाकर इस ग्रन्थ को पढ़ो, तो यह ग्रन्थ जैन दर्शन को ठोस आधार प्रदान करता है। जैन दर्शन की पूरी तत्त्व व्यवस्था को संक्षेप में इस ग्रन्थ में समझाया है।
9. ध्यान के बारे में बहुत ही सरल, मार्मिक एवं गम्भीर बातें इस ग्रन्थ में की गयी हैं। जिस विषय पर एक-एक हजार पृष्ठ के अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, उस ध्यान विषय को आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव ने मात्र 6 गाथाओं में बहुत ही सरल तरीके से समझाया है।
10. 'द्रव्यसंग्रह' ग्रन्थ लगभग सभी भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। इसकी उपयोगिता एवं प्रसिद्धि के कारण सभी देशवासी इसे अपनी भाषा में पढ़ते हैं।
ग्रन्थ का मुख्य विषय
इस ग्रन्थ में कुल 3 अधिकार हैं, जिनमें मात्र 58 गाथाओं में ही समग्र जैन दर्शन का सार समाहित है ।
1. षड्द्रव्य - पंचास्तिकाय अधिकार (27 गाथा )
इस अधिकार में सबसे पहले आचार्य जीव और अजीव द्रव्य को समझानेवाले
द्रव्यसंग्रह :: 163