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________________ द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम 'द्रव्यसंग्रह' है। इसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन छह द्रव्यों का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'द्रव्यसंग्रह' रखा गया है। इस ग्रन्थ में बहुत ही सरल एवं छोटी-छोटी परिभाषाओं के द्वारा छह द्रव्यों को समझाया गया है। ग्रन्थकार का परिचय 'द्रव्यसंग्रह' जैन धर्म का बहुत ही लोकप्रिय ग्रन्थ है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव ने विशेष तत्त्वों के ज्ञान के लिए द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ की रचना आश्रमनगर में की थी। इनका समय वि.सं. की 12वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में माना जाता है। यह ग्रन्थ बहुत ही छोटा है। इसमें कुल 58 गाथाएँ हैं। परन्तु फिर भी यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। ग्रन्थ का महत्त्व इस ग्रन्थ की इतनी अधिक विशेषताएँ हैं कि इनका संक्षेप में वर्णन करना बहुत जरूरी है। इन विशेषताओं को पढ़कर पाठकगण इस ग्रन्थ का अध्ययन करने के लिए उत्सुक होंगे। 1. इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मात्र 58 गाथाओं में समग्र जैन दर्शन को संक्षेप में प्रतिपादित कर दिया गया है। 'गागर में सागर' की उक्ति इस ग्रन्थ में पूर्णत: चरितार्थ होती है। 2. इस ग्रन्थ को और इसके विषय को सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। 162 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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