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कटते हैं। इसलिए प्रत्येक जीव को विद्या पढ़कर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। जिस प्रकार समुद्र में श्रेष्ठ मणि के गिर जाने पर उसका मिलना कठिन है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म, उच्चकुल और जिनवाणी का मिलना भी कठिन है। सम्यग्ज्ञान के प्रभाव से ही जीव मोक्ष प्राप्त करते हैं। इसलिए संसार के विषय-सुख को छोड़कर आत्मा का ध्यान करना चाहिए।
सम्यग्ज्ञान के बाद श्रावकों को सम्यक्चारित्र का पालन करना चाहिए। जिसमें श्रावकों के बारह व्रत–पाँच अणुव्रत (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य
और अपरिग्रह) तीन गुणव्रत (दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत) चार शिक्षाव्रत (सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगापभोगपरिमाणव्रत और अतिथिसंविभाग व्रत) आते हैं। जो प्राणी इन बारह व्रतों का पालन करता है, व्रतों में अतिचार (दोष) नहीं लगाता, मृत्यु के समय समाधिमरण धारण कर समस्त दोषों को दूर करता है, वह श्रावक स्वर्ग में देव पर्याय प्राप्त करता है। व्रतों के प्रभाव से फिर मनुष्य भव पाकर मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त करता है।
पाँचवीं ढाल महाव्रती मुनिराज संसार और भोगों से विरक्त होकर निम्नलिखित बारह भावनाओं का चिंतवन करते हैं। इन भावनाओं के चिन्तन करने से वैराग्य बढ़ता है, समता रूपी सुख मिलता है और मोक्ष सुख भी प्राप्त होता है।
___ 1. अनित्य भावना- घर, धन, गोधन, कुटुम्ब, नौकर और स्त्री यह सब इन्द्रधनुष और बिजली की चंचलता के समान क्षणमात्र रहनेवाले हैं, ऐसा विचार करना अनित्य भावना है।
2. अशरण भावना- इन्द्र, देव और मनुष्य आदि सब को मृत्यु नष्ट कर देती है, मरते हुए जीव को कोई नहीं बचा सकता-ऐसा सोचना अशरण भावना
3. संसार भावना- संसार में चारों गतियों के दुख हैं, सार रहित इस संसार में सुख नहीं हैं- ऐसा विचार करना संसार.भावना है।
4. एकत्व भावना- शुभ-अशुभ कर्मों का फल जीव को स्वयं अकेले ही भोगना पड़ता है, स्त्री पुत्र कोई भी साथ नहीं देता है।
5. अन्यत्व भावना- एक जैसे दिखनेवाले आत्मा और शरीर ही अलगअलग हैं तो स्त्री, पुत्र, धन और वैभव एक कैसे हो सकते हैं?
6. अशुचि भावना- यह शरीर अपवित्र है, इससे प्रेम नहीं करना चाहिए।
छहढाला :: 145