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वैराग्य-चिन्तन, छह
हो गये हैं। जैसे—चारों गतियों के दुख, अध्यात्म, द्रव्य, सात तत्त्व, ध्यान, योग, श्रावक एवं श्रमण (मुनि) का चारित्र ।
4. इस ग्रन्थ में नरक गति से लेकर मोक्ष अवस्था तक की सम्पूर्ण यात्रा का वर्णन है ।
5. दुख क्या है ? दुख के कारण क्या हैं? और दुख से छूटने के उपाय क्या हैं ? इन तीनों विषयों को बहुत अच्छे से इस ग्रन्थ में समझाया है।
6. श्रावकों के स्वाध्याय के लिए यह ग्रन्थ सबसे पहला, सरल एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
7. शिविर, कक्षाएँ, सेमिनार और संगोष्ठियों में सर्वप्रथम 'छहढाला' ग्रन्थ को ही पढ़ाया जाता है।
8. विदेशों में भी इस ग्रन्थ को बहुत पढ़ाया जाता है।
ग्रन्थ का मुख्य विषय
छहढाला में छह ढाल (अध्याय) हैं और उनमें कुल मिलाकर 96 छन्द हैंपहली ढाल में 17 छन्दों में नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव - चारों गतियों और निगोद के दुखों का वर्णन है ।
दूसरी ढाल में 15 छन्दों में मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्र का वर्णन है । तीसरी ढाल में 17 छन्दों में सात तत्त्वों और सम्यग्दर्शन का परिचय है । चौथी ढाल में 15 छन्दों में सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का परिचय है। पाँचवीं ढाल में 15 छन्दों में बारह भावनाओं का परिचय मिलता है। छठी ढाल में 15 छन्दों में सकल चारित्र और मोक्ष अवस्था का वर्णन है ।
पहली ढाल
सबसे पहले मंगलाचरण में वीतराग-विज्ञानता को नमस्कार किया है, जो तीनों लोकों में सार है, आनन्द और मोक्ष देनेवाली है।
इसके बाद कहा है कि तीनों लोकों के सभी अनन्त प्राणी सुख चाहते हैं और दुखों से डरते हैं, अतः जो प्राणी अपना कल्याण करना चाहते हैं, उन्हें मन से गुरु की सुख देनेवाली और दुख दूर करनेवाली शिक्षा को सुनना चाहिए।
संसार में प्रत्येक प्राणी अनादिकाल से चारों गतियों में भटक रहा है, और अनेक दुख सहन कर रहा है। वह अनादिकाल से निगोद में एक श्वास में अठारह बार जन्म लेता है और अठारह बार मरता है । इस तरह अनन्त दुखों को सहते हुए 140 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय