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________________ छहढाला ग्रन्थ के नाम का अर्थ ‘छहढाला' का अर्थ है, छह ढालों से युक्त । जिस प्रकार युद्ध में तलवार आदि के वार से रक्षा के लिए ढाल लगाई जाती है, उसी प्रकार जो कर्म - शत्रुओं के वार से हमारी रक्षा करते हैं, उन्हें ढाल कहते हैं । ये यहाँ छह अध्यायों में वर्णित हैं, इसलिए इस ग्रन्थ का नाम 'छहढाला' रखा गया है। दूसरा कारण यह भी है कि इसमें छह प्रकार की लय (छन्द) होने से भी इसे छहढाला कहते हैं । ग्रन्थकार का परिचय 'छहढाला' ग्रन्थ की रचना कविवर पंडित दौलतराम जी ने की है। इनका जन्म विक्रम संवत् 1855-1856 के मध्य हुआ था । कवि दौलतराम लब्धप्रतिष्ठ कवि थे। ये हाथरस के निवासी और पल्लीवाल जाति के थे । छहढाला हिन्दी ब्रज भाषा में लिखा गया सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ है। छहढाला के अतिरिक्त इनकी रचना 'दौलत - विलास' भी उपलब्ध होती है जिसमें लगभग 125 आध्यात्मिक भजन (पद) हैं। ग्रन्थ का महत्त्व 1. छहढाला ग्रन्थ वैराग्य को बढ़ानेवाला एवं शान्तरस प्रधान ग्रन्थ है। 2. यह ग्रन्थ इतना महत्त्वपूर्ण है कि विद्वान इसकी तुलना आचार्य कुन्दकुन्द के महान आध्यात्मिक ग्रन्थ 'समयसार' से करते हुए इसे 'लघु समयसार ' कहते हैं । 3. यह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें सभी प्रयोजनभूत विषय समाहित छहढाला :: 139
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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