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________________ हिंसा और अहिंसा कब होती है, इसका बहुत सुन्दर वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। यथा 1. एक जीव हिंसा न करते हुए भी हिंसा के फल को भोगता है। दूसरा जीव हिंसा करता है फिर भी हिंसा के फल को नहीं भोगता है। 2. कोई जीव तीव्र कषाय के कारण थोड़ी भी हिंसा करता है, तो वह हिंसा भविष्य में जीव को बहुत अशुभ फल देती है। जबकि दूसरा जीव ज्यादा हिंसा करता है, परन्तु उस हिंसा में उदासीन रहता है, उसकी कषाय कम होती है, तब जीव को भविष्य में हिंसा का फल कम ही मिलता है। 3. दो पुरुष बाह्य हिंसा एक साथ करते हैं तो उस हिंसा में जिसने तीव्र कषाय से हिंसा की, उसे तीव्रफल प्राप्त होता है और जिसने मन्दकषाय से हिंसा की उसे मन्दफल प्राप्त होता है। 4. हिंसा कषाय भाव के अनुसार ही फल देती है। अर्थात् किसी जीव को हिंसा का फल पहले ही मिल जाता है, किसी को करते-करते मिलता है और किसी को कर लेने के बाद हिंसा का फल मिलता है। 5. कभी एक पुरुष हिंसा करता है, परन्तु फल भोगनेवाले बहुत होते हैं। और कभी अनेक पुरुष हिंसा करते हैं, परन्तु हिंसा का फल भोगनेवाला एक ही पुरुष होता है। अतः यथार्थ रीति से हिंसा-अहिंसा को समझकर पुरुषों को अपनी शक्ति अनुसार हिंसा करने का त्याग करना चाहिए। जो व्यक्ति हिंसा का त्याग करना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले मद्य (शराब), मांस, मधु (शहद) और पाँच उदुम्बर फलों का सेवन अवश्य छोड़ देना चाहिए। मद्यपान (शराब) के दोष शराब मन को मोहित करती है, शराब पीने के बाद कुछ होश नहीं रहता और मोहित मनवाला मनुष्य धर्म को भूल जाता है, जिससे वह बेधड़क होकर हिंसादि पाप करता है। शराब बहुत सारे एकेन्द्रियादि जीवों का उत्पत्ति-स्थान है, इसलिए जो शराब का सेवन करता है, उसके द्वारा उन जीवों की हिंसा अवश्य हो जाती है। __ शराब पीने से अभिमान, भय, घृणा, हास्य, शोक, काम, क्रोधादि जितने हिंसा के भेद हैं, वे सभी तीव्ररूप से होते हैं। 130 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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