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इस प्रकार सम्यग्ज्ञान को इन आठ अंगों के साथ ग्रहण करना चाहिए। पाठकगण को, वर्तमान शिक्षा पद्धति को और सभी श्रावकों को इन आठ अंगों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
3. सम्यक् चारित्र अधिकार
सम्यग्दर्शन से जिन्होंने दर्शनमोह का नाश कर दिया है, सम्यग्ज्ञान से जिन्होंने सात तत्त्वों को जान लिया है, ऐसे दृढ़चित्त वाले पुरुषों को सम्यक्चारित्र ग्रहण करना चाहिए।
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह के सर्वदेश तथा एकदेश त्याग से चारित्र दो प्रकार का होता है
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सर्वदेश त्याग (सकल चारित्र) : मुनि महाराज के होता है । एकदेश त्याग (विकल चारित्र) : श्रावक के होता है ।
अहिंसा
कषाय के कारण 'अपने' और 'पर' के प्राणों का घात करना हिंसा है । रागादि भावों का न होना अहिंसा है । रागादि भावों की उत्पत्ति होना हिंसा है।
जैन सिद्धान्त का सार इतना ही है कि धर्म का लक्षण अहिंसा है, इसलिए रागादि भावों का नाश करना चाहिए । रागादि भावों के न रहने पर सन्त पुरुषों से प्राणों द्वारा हिंसा नहीं होती है । रागादि भावों के कारण हम कोई भी क्रिया करते हैं, जिससे जीव मरे अथवा न मरे, तब भी हमें हिंसा अवश्य होती है ।
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हिंसा शब्द का अर्थ घात करना है । यह घात दो प्रकार का है1. आत्मघात, 2. परघात ।
जिस समय आत्मा में कषाय भावों की उत्पत्ति होती है, उसी समय आत्मघात हो जाता है । आत्मघात और परघात दोनों ही हिंसा है।
हिंसा के त्याग का अभाव होना अर्थात् हिंसा करने का त्याग नहीं होना भी हिंसा ही है । परजीव के घातरूप हिंसा दो प्रकार की है
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1. जिस समय जीव हिंसा तो नहीं करता, लेकिन अंतरंग में हिंसा करने का त्याग नहीं करता, उस हिंसा को अविरमणरूप हिंसा कहते हैं ।
2. जिस समय जीव परजीव के घात में मन से, वचन से अथवा काय से कार्य करता है, उसे परिणमनरूप हिंसा कहते हैं।
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परिणामों की निर्मलता के लिए सर्व हिंसा का त्याग करना चाहिए ।
पुरुषार्थसिद्धयुपाय
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