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________________ टीकाग्रन्थ : 5. समयसारटीका (आत्मख्याति) 6. प्रवचनसारटीका (तत्त्वदीपिका) 7. पंचास्तिकायटीका (समयव्याख्या) ग्रन्थ का महत्त्व 1. इस ग्रन्थ में श्रावकाचार के विषय को निश्चय-व्यवहार आदि के द्वारा बहुत सरलता से उदाहरण देकर समझाया है। यह पूरा ही ग्रन्थ निश्चय व्यवहार के समन्वय की सुगन्ध से महक उठा है। 2. इस ग्रन्थ में एक बहुत सुन्दर चर्चा यह आई है कि शिष्य को उपदेश का सच्चा फल जब प्राप्त होता है, जब वह व्यवहार नय और निश्चय नय को वस्तु स्वरूप से यथार्थ जानकर मध्यस्थ होता है। अर्थात् जब वह वस्तु के शुद्ध और अशुद्ध स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। 3. सम्यग्ज्ञान के वर्णन में ज्ञान के आठ अंगों का जो वर्णन किया है, वह आज के समय की मौलिक आवश्यकता है। ज्ञान के प्रकार और ज्ञान की आराधना कैसे करना चाहिए, इस विषय को आज की शिक्षा संस्थाओं को भी समझना बहुत आवश्यक है। 4. हिंसा और अहिंसा का बहुत सुन्दर और सूक्ष्म विवेचन इस ग्रन्थ में किया गया है। 5. इस ग्रन्थ में मिथ्यादृष्टि जीव द्वारा हिंसा के बारे में जो युक्तियाँ प्रचलित हैं, उन सब मिथ्या युक्तियों का खंडन करते हुए अहिंसा का पाठ पढ़ाया गया 6. बारह तप, छह आवश्यक, व्रत, समिति, दश धर्म, बारह भावना, और बाईस परीषह-इन सब विषयों का वर्णन छोटी-छोटी परिभाषाओं द्वारा किया गया है, जिससे सभी श्रावक इन्हें आसानी से समझ सके। 7. विद्यालय, विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इस ग्रन्थ को शामिल किया गया है। शिविर-संगोष्ठियों, शोधलेखों आदि में भी इस ग्रन्थ का अपना अलग स्थान है। 8. इस ग्रन्थ का श्रावकाचार के ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये सर्वाधिक पढ़ा जानेवाला मौलिक ग्रन्थ है। 9. अनेक भाषाओं में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है। यह बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया ग्रन्थ है। . पुरुषार्थसिद्धयुपाय :: 125
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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