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पुरुषार्थसिद्धयुपाय
ग्रन्थ के नाम का अर्थ पुरुष अर्थात् आत्मा। इस ग्रन्थ में आत्मा के अर्थ अर्थात् प्रयोजन की सिद्धि कैसे होती है इस बात को बहुत अच्छे से समझाया गया है, इसलिए इस ग्रन्थ का नाम 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय'। इसका दूसरा नाम 'जिनप्रवचन-रहस्य-कोष' भी है। ग्रन्थकार का परिचय आध्यात्मिक विद्वानों में आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात् आदरपूर्वक जिनका नाम लिया जाता है, वे आचार्य अमृतचन्द्रसूरि हैं, क्योंकि आचार्य कुन्दकुन्द के कंचन को कुन्दन बनानेवाले आचार्य अमृतचन्द्र ही हैं, जिन्होंने एक हजार वर्ष बाद उनके ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखकर उनकी गरिमा को जगत के सामने रखा।
आचार्य अमृतचन्द्र परम आध्यात्मिक सन्त, गहन तात्त्विक चिन्तक, रससिद्ध कवि, तत्त्वज्ञानी एवं सफल टीकाकार थे। मुनीन्द्र, आचार्य और सूरि जैसी गौरवशाली उपाधियों से इनका महान व्यक्तित्व सम्मानित था।
इनका परिचय किसी भी ग्रन्थ में प्राप्त नहीं होता है। इनका समय अनुमानतः ई. सन् की 10वीं शताब्दी का अन्तिम भाग है। पं. आशाधरजी ने गौरव के साथ इन्हें ठक्कुर' नाम से सम्मानित किया है।
रचनाएँ : आचार्य अमृतचन्द्रसूरि की रचनाओं को दो कोटि में रखा गया है। मौलिक रचनाएँ : 1. पुरुषार्थसिद्धयुपाय
2. तत्त्वार्थसार 3. समयसार-कलश 4. लघुतत्त्वस्फोट
124 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय