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________________ ग्रन्थ का महत्त्व जैन साहित्य में लाखों ग्रन्थ हैं। उनमें से 10-20 ग्रन्थ ऐसे हैं, जो जैन दर्शन के मूल आधार स्तम्भ हैं। रत्नकरण्ड श्रावकाचार उनमें से एक है। जैन साहित्य का जो विशाल भवन खड़ा हुआ है, उसमें 10-15 ग्रन्थों के साथ रत्नकरण्ड श्रावकाचार ग्रन्थ भी उस विशाल भवन की नींव है। इस ग्रन्थ की अनेक विशेषताएँ हैं, जिनके कारण यह ग्रन्थ बहुत ही लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। जैसे 1. श्रावकाचार सम्बन्धी ग्रन्थों में यह ग्रन्थ सबसे पहला, सबसे सरल एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसी ग्रन्थ को आधार बनाकर श्रावकाचार सम्बन्धी अन्य ग्रन्थों की रचना की गयी है। सरल भाषा में कह सकते हैं कि रत्नकरण्ड श्रावकाचार ग्रन्थ पेड़ की जड़ के रूप में है। अन्य श्रावकाचार के ग्रन्थ जैसे-पुरुषार्थसिद्धयुपाय, वसुनन्दि श्रावकाचार, अमितगति श्रावकाचार, धर्मामृत इस पेड़ की (ग्रन्थ की) शाखाएँ, पत्ते, फूल और फल हैं। 2. जगत में एक भी ऐसा जैन मन्दिर नहीं होगा जहाँ यह ग्रन्थ उपलब्ध न हो अर्थात् रत्नकरण्ड श्रावकाचार ग्रन्थ हर मन्दिर की शोभा है। जैसे फूल के बिना उद्यान सुशोभित नहीं होता, उसी तरह इस ग्रन्थ के बिना जिनमन्दिर सुशोभित नहीं होता है। 3. आज से सैकड़ों साल पहले जब छपाई और प्रेस का काम नहीं था, तब भी लोग इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रतियों से इसका स्वाध्याय करते थे। 4. आज भी प्रत्येक जैन मन्दिरों में, सभाओं में, संगोष्ठियों में और विद्वानों की चर्चा में इस ग्रन्थ का स्वाध्याय, वाचन एवं पाठन आदि होता रहता है। 5. महाराष्ट्र और कर्नाटक में लोग इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करने और आनन्द लेने के लिए हिन्दी सीखते थे। 6. देश-विदेश की लगभग सभी भाषाओं में इस ग्रन्थ का अनुवाद किया गया है। ___7. यह ग्रन्थ बहुत सरल एवं संक्षिप्त है। इसमें मात्र 150 श्लोकों में परे श्रावकाचार का वर्णन किया गया है। 8. भाषा शैली की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ सरल है। इसके श्लोकों में बहुत सुन्दर कोमलकान्त पदावली और ललित शब्दावली में गम्भीर अर्थों का प्रयोग हुआ है। 106 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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