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________________ 20. अद्भुत ज्ञान भगवान निर्मल और सम्पूर्ण आत्मज्ञान से सुशोभित हैं, उनके जैसा ज्ञान जगत में किसी अन्य देव में दिखाई नहीं देता । 21. सन्तोष प्रदाता हे भगवान! संसार में आपसे बढ़कर परम शान्त वीतराग देव अन्य कोई नहीं है, आप सर्वोत्कृष्ट हैं। आपको देखने मात्र से हृदय श्रद्धा से पूर्ण सन्तुष्ट हो गया है। 22. महान जननी हे भगवान! आपको जन्म देनेवाली माता अद्भुत है, अपूर्व है, जिन्होंने आपके समान महाप्रतापी पुत्ररत्न को जन्म दिया है। 23. मार्गदर्शक आचार्य कहते हैं कि हे प्रभु! आप राग-द्वेष के मल से रहित हैं। आप मुक्ति के मार्ग के पथ-प्रदर्शक हैं । आपकी भक्ति ही मोक्षमार्ग है । 24 से 25. सहस्रनाम धारक इन दोनों काव्यों में भगवान को अनेक नामों से सम्बोधित किया है कि आप ही ईश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और पुरुषोत्तम हैं। 26. नमस्कार इस काव्य में तीन लोक के जन्म- जरा मृत्यु रूप संसार - समुद्र को नष्ट करनेवाले भूमंडल के निर्मल भूषण परमेश्वर को नमस्कार किया है। 27. सद्गुणों के भण्डार हे प्रभु! संसार में जितने सद्गुण हैं, वे सभी आप में आश्रय पा चुके हैं, अर्थात् संसार के समस्त सद्गुण आप में विद्यमान हैं, तथा जो आप से विमुख (दूर) हैं वे आसुरी वृत्तियों के कारण सभी दुर्गुणों के केन्द्र बन गये हैं । 102 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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