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13. सूर्य की उपमा
आचार्य प्रभु के मुखमंडल को जगत की सुन्दर से सुन्दर उपमा देते हैं, जैसे- सूर्य की। किन्तु वह उपमा भी कम लगती है, क्योंकि प्रभु तो केवलज्ञान रूपी सूर्य के रूप में अनुपम प्रभावशाली हैं।
14. लोकव्यापी
गुण
प्रभु के अनन्त ज्ञान, दर्शन आदि निर्मल गुण तीनों लोकों में सर्वत्र व्याप्त हैं, सर्वत्र प्रभु के गुण गाये जाते हैं।
15. प्रभु! अचल मेरू समान
इस काव्य में प्रभु को कामविकारों को जीतनेवाला बताया है, क्योंकि प्रभु अचल मेरू समान हैं।
16. अपूर्व दीपक
इस काव्य में जिनवर को अपूर्व दीपक कहा है, क्योंकि वह धुआँ, बत्ती, तेल से रहित है और फिर भी तीन लोक को प्रकाशित करता है ।
17. अपूर्व सूर्य
प्रभु! आप सूर्य से भी अधिक प्रभावशाली हो । आप केवलज्ञान रूपी प्रकाश से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करनेवाले हो ।
18. अद्भुत चन्द्रमा
हे प्रभु! आपका मुखमंडल एक अद्भुत चन्द्रमा है, क्योंकि वह समस्त जगत का अज्ञान-मोहरूप अन्धकार नष्ट कर देता है, जैसे चन्द्रमा अन्धकार नष्ट कर देता है । आपके मुख-चन्द्र की कान्ति अनन्त है, समस्त जगत को प्रकाशित करनेवाली है । इसलिए आपका मुख एक अपूर्व चन्द्र- बिम्ब है ।
19. सूर्य चन्द्र की अनुपयोगिता
प्रभु का मुखचन्द्र अन्धकार का नाशक और समस्त जगत को प्रकाशित करनेवाला है, अत: सूर्य और चन्द्रमा की आवश्यकता ही नहीं रहती है, क्योंकि प्रभु सूर्य चन्द्र से भी अधिक प्रकाशयुक्त हैं ।
भक्तामर स्तोत्र :: 101