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________________ सिद्ध क्षेत्र पावागिरि ( पवा जी ) यह सिद्धक्षेत्र उ.प्र. के ललितपुर जिलान्तर्गत ललितपुर झांसी सड़क मार्ग पर ललितपुर से 45 किमी. दूर तालबेहट कस्बे से कुछ आगे स्थित है। मुख्य सड़क मार्ग पर एक भव्य द्वार निर्मित है। यहां से यह क्षेत्र मात्र 2 किमी. दूर है। आगरा-मुम्बई रेलमार्ग पर तालबेट स्टेशन पर उतरकर भी यहां पहुँचा जा सकता है। यहां से यह सिद्धक्षेत्र मात्र 7 किमी. की दूरी पर है। यह तीर्थ क्षेत्र सेरोन जी से मात्र 37 किमी. व झांसी से मात्र 38 किमी. दूर है । यहां इस क्षेत्र पर अगहन कृष्णा 2 से 5 तक वार्षिक मेला लगता है । यह क्षेत्र पक्के सड़क मार्ग से जुड़ा है। सं. 1345 में भट्टारक श्रुतकीर्ति देव ने प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा कराई थी; ऐसा प्रशस्ति में उल्लेख है । क्षेत्र के पास सेवेतवा नदी बहती है । यह क्षेत्र पहाड़ी के मध्य भाग में स्थित है । इतिहास : यह एक अतिप्राचीन तीर्थ क्षेत्र है; जिसका अस्तित्व वर्षों पूर्व से रहा है। निर्वाण कांड भाषा में कथन आता है "स्वर्णभद्र आदि मुनि चार, पावागिरि वर शिखर मंझार । चेलना नदी तीर के पास, मुक्ति गये वन्दौ नित तास । । " भगवान चन्द्रप्रभु का समवशरण जब सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पर आया था; तो समवशरण सभा के पश्चात् मुनि स्वर्णभद्र अपने तीन अन्य मुनियों गुणभद्र, मणिभद्र व वीरभद्र के साथ सोनागिर से विहार कर यहां पधारे थे; व यहीं क्षेत्र स्थित पहाड़ी पर तपश्चरण कर मोक्ष पधारे थे। यह सिद्धक्षेत्र अतिप्राचीन है; जहां भोंयरे में स्थित देवपत खेवपत पाड़ाशाह द्वारा स्थापित जिनबिम्ब विराजमान हैं। ये जिनबिम्ब सं. 1294 व 1345 में प्रतिष्ठित किये गये थे । इसके अलावा क्षेत्र व क्षेत्र के आसपास अनेक स्थानों पर मुनिवृंदों के चरण स्थापित हैं । यह क्षेत्र सैकड़ों वर्षों तक मुनिवृंदों की तपोभूमि रही है । अतिशय : सिद्ध क्षेत्र के अलावा यह अतिशय क्षेत्र भी हैं। यहां भोंयरे में स्थित जिन - प्रतिमाओं के दर्शन करने से सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं व सांसारिक भयों से मुक्ति मिलती है। मंदिर प्रांगण में क्षेत्रपाल की विशाल प्रतिमा विराजमान है; जो क्षेत्र रक्षक देव हैं व सामान्यजनों की मनोकामनायें पूर्ण करते हैं; लोगों का ऐसा विश्वास है । यहीं मूल मंदिर के पीछे पहाड़ी पर भूरे बाबा की गुफा स्थित है; जहां हजारों जैन व अजैन श्रद्धालु भूतप्रेत आदि की बाधाओं को दूर कराने हेतु आते हैं । 1 जिनालय : इस क्षेत्र पर 9 जिनालय स्थित हैं 1. सर्वप्रथम दर्शनार्थी क्षेत्र की वंदना बायें हाथ की ओर से प्रारंभ करता है । बायीं ओर वर्ष 2006 में दूसरी मंजिल पर एक भव्य चौबीसी का निर्माण 98 मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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