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. 22. ऊँची जगती पर स्थित इस जिनालय में भी भगवान पार्श्वनाथ की तीन प्रतिमायें स्थापित हैं। द्वार पर भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति भी विराजमान है। कुक्कुट सर्प को यहां चिह्न के रूप में अंकित किया गया है।
23. प्राचीन अवशेषों से निर्मित इस मंदिर में 11वीं सदी की 10 फीट से 13 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्तियां स्थित हैं। मध्य में चौमुखी जिनमूर्ति है। ये सभी पार्श्वनाथ भगवान की हैं। मंडप में ही जिनमाता "त्रिशला" शैया पर लेटी 11वीं सदी की सर्वालंकृत मूर्ति भी है। जिसमें 24 जिन-प्रतिमायें भी अंकित हैं।
24. जिसमें 52 चरण-चिह्नों वाला एक पट्ट लगा है, यह समवसरण मंदिर है। 8वीं सदी में निर्मित बीच में कायोत्सर्ग जिन चौमुखी प्रतिमा हैं। दक्षिणी कक्ष में भगवान नेमिनाथ व उत्तरी कक्ष में ऋषभनाथ की जटाओं से युक्त मूर्ति विराजमान है। इसमें 8वीं सदी की जिन-प्रतिमा पूर्वी कक्ष में है। भगवान पद्मप्रभु की मूर्ति भी इस जिनालय में स्थित है।
25. 10वीं सदी- गर्भगृह में भगवान पार्श्वनाथ व ऋषभनाथ की मूर्तियां हैं। वाह्य भित्ति पर भी 3 जिन-प्रतिमायें हैं।
26. मुनिसुव्रतनाथ जिनालय- इस जिनालय में तीन जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं।
__27. 9वीं सदी- वाह्य भित्तियों पर तीन ओर दिगंबर ध्यानस्थ प्रतिमायें हैं। इस जिनालय के गर्भगृह में पद्मप्रभु की मूर्ति विराजमान है।
28. 10वीं सदी का समतल छत वाला जिनालय- भगवान वासुपूज्य व पद्मप्रभु भगवान के अतिरिक्त अन्य मूर्तियां भी इस जिनालय में स्थित हैं।
. 29. गर्भगृह में 9वीं सदी की 12 फीट ऊँची भगवान नमिनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा विराजमान है। पार्श्व भागों में दो छोटी कायोत्सर्ग प्रतिमायें भी उकेरी गई हैं।
30. शान्तिनाथ जिनालय- इस विशाल जिनालय के गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। गर्भगृह का द्वार चंदेलकालीन है। भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा 8वीं सदी के पूर्व की है वाह्य प्रदक्षिणा भित्ति व शिखर पर उकेरी मूर्तियां 9 वीं सदी (प्रतिहार काल) की हैं। अर्ध-मंडप में उत्तर व दक्षिण में दो छोटे जिनालयों में भी ध्यानस्थ व कायोत्सर्ग मुद्रा की मूर्तियां हैं। महामंडप में कुल सात चौमुखी मूर्तियां हैं। जिनालय में 18 फीट ऊँची भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के महामंडप के पश्चिम के चार स्तंभों वाले स्वतंत्र मंडप (दक्षिण-पूर्व) पर उत्कीर्ण लेख 862 ई. का है। वाह्य प्रदक्षिणा की भित्ति पर 24 यक्षणियों का समूह अंकन है। जो ऐसे अंकन का प्राचीनतम ज्ञात उदाहरण है। कुछ पर यक्षणियों के नामों का अंकन भी है; जो तिलोयपण्णति में वर्णित नामों से मेल खाते हैं। मंदिर का महामंडप 36 स्तंभों पर टिका है। गर्भगृह के द्वार पर मध्य में भगवान ऋषभनाथ की जिन-प्रतिमा
मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 95