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गया। यहां के श्रावक साधु परमेष्ठियों व आर्यिका माताओं का सम्मान श्रद्धापूर्वक किया करते थे।
देवगढ़ किला वेतवा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है, जिसके आसपास गुप्तकाल और उसके बाद के महत्वपूर्ण लेख व मूर्तियां उपलब्ध हैं। इस दुर्ग के दक्षिण में स्थित राजघाटी में एक प्रागैतिहासिक गुफा भी है। जिसमें उस काल के चित्र देखे जा सकते हैं। किले के नीचे अतिप्राचीन व
अतिदुर्लभ दशावतार मंदिर है। पहाड़ों के ठीक नीचे विशाल जैनधर्मशालायें स्थित हैं; जहां एक भव्य जिनालय का निर्माण किया गया है। यहां के जिनालयों का क्रमिक वर्णन इस प्रकार है
1. 11वीं सदी का यह जिनालय प्रवेश द्वार में प्रवेश करने के बाद बायीं ओर मुख्य मार्ग से कुछ हटकर है। इस आयताकार मंडप वाले जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ की दो कायोत्सर्ग मूर्तियां व प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ व नेमिनाथ भगवान की एक-एक ध्यानस्थ मूर्तियां विराजमान हैं।
2. पर्वत स्थित कमेटी कार्यालय के सामने स्थित इस जिनालय में 31 ध्यानस्थ व कायोत्सर्ग जिनबिम्ब विराजमान हैं, जो 9वीं से 10वीं सदी में निर्मित हैं। मूल प्रतिमा भगवान ऋषभनाथ की है। 10वीं सदी की श्री नेमिनाथ की मर्ति में जटाओं का अंकन भी है। मूर्ति में शंख का चिह्न नहीं है, किन्तु कुबेर और अम्बिका की आकृतियां नेमिनाथ की मूर्ति के साथ ही होती हैं। जो इस प्रतिमा के पार्श्व भागों में उत्कीर्ण हैं। इस प्रतिमा पर 24 जिन-प्रतिमाओं का अंकन भी है। , . ____. सहस्रकूट जिनालय : 11वीं सदी के इस जिनालय का प्रवेश द्वार अलंकृत है। गर्भगृह में चारों ओर कुल 1008 छोटी-छोटी जिन-प्रतिमायें हैं।
4. इस जिनालय में 11वीं सदी की तीन जिन-प्रतिमायें हैं। मध्य की मूलनायक पदमासन प्रतिमा भगवान मुनिसुव्रतनाथ की है।
5. इस जिनालय के तीन कक्षों में कायोत्सर्ग मुद्रा में केवल भगवान पार्श्वनाथ की ही 23 प्राचीन जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं जो 10वीं से 12वीं सदी की हैं। एक मूर्ति के कंधों पर लटें भी हैं। ऐसी प्रतिमायें अन्यत्र देखने को नहीं मिलती हैं।
6. पंचबालयति जिनालय में भगवान वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ व महावीर स्वामी जो बालयति थे; की प्रतिमायें विराजमान हैं। महामंडप में तीर्थंकरों के माता-पिता की युगल मूर्तियां भी हैं। 10वीं से 11वीं सदी की भगवान ऋषभनाथ की एक कायोत्सर्ग मूर्ति गुप्त काल की कला से मेल खाती है। इसके आगे 6 मानस्तंभ बने हैं। दो मानस्तंभों में चारों ओर 44-44 दिगंबर मूर्तियां बनी हैं।
7. इस जिनालय में तीन पदमासन व दो कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित जिन-प्रतिमायें हैं जो सभी सुमतिनाथ तीर्थंकर भगवान की हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ .93