________________
है वर्तमान में इन मूर्तियों को एक विशाल नवनिर्मित हाल में विराजमान किया गया हैं यह प्रतिमायें स्वर्ण आभा लिये लाल प्रस्तर की हैं । मुखमंडल के चारों ओर स्थित आभामंडल विशेष आकर्षक है। सभी प्रतिमायें अतिप्राचीन, कलात्मक व आकर्षक हैं ।
5. सहस्रकूट चैत्यालय : मध्ययुगीन भारतीय स्थापत्य कला का प्रतीक यह चैत्यालय 50 फीट से भी अधिक ऊँचा नागर शैली में निर्मित है। यह जिनालय चतुर्मुख है; अर्थात् इसके चारों ओर दरवाजे हैं। यह 10वीं शताब्दी में निर्मित है तथा खजुराहो शिल्प का बेजोड़ नमूना है । शिखर के मध्य भाग में तीन तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं व पार्श्व भागों पर शासन देवता स्थित हैं । ललाटबिम्ब पर भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है व पास ही नवगृहों की उल्लेखनीय व सुंदर रचना है। अहार जी के भगवान शान्तिनाथ के पामूल में स्थित शिलालेख में यह उल्लेख है कि बानपुर के सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण देवपाल ने कराया था । यह शिलालेख 1237 का है । चारों दिशाओं में स्थित इस कूट के मध्य में भगवान आदिनाथ की भव्य प्रतिमा है; इसके चारों ओर चार द्वारपाल बने हैं । तोरणों के ऊपर नीचे मदमस्त हाथी, सिंह समूह व कलश वाहिनी देवियां उत्कीर्ण हैं । चैत्यालय के अन्तः भाग में 3 फीट चौकोर अधिष्ठान पर 1008 जिनबिम्ब बने हुए हैं। पुरातत्व - वेत्तओं ने इस कूट की गणना शिल्प- संसार में 7 अद्भुत मूर्तियों में की हैं ।
1
संग्रहालय : परिसर में ही सहस्रकूट चैत्यालय के आगे एक संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में सैकड़ों की संख्या में मूर्तियों के भग्नावशेष संग्रहीत हैं। एक 5 x 4 फीट के शिलाखंड में 70 मूर्तियां उत्कीर्ण हैं; जिनमें 53 जिनबिम्ब हैं व शेष शासन देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।
धर्मशाला : यहां रुकने के लिए धर्मशाला भी है। जिसमें जल, विद्युत आदि की पर्याप्त व्यवस्था है 1
जो श्रद्धालु टीकमगढ़ आते हैं; उन्हें इस क्षेत्र के दर्शनों का लाभ अवश्य उठाना चाहिये। यह क्षेत्र समतल मैदानी भाग पर स्थित है व प्राचीन है।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ 87