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________________ शान्तिनाथ के पाद्मूल में स्थित प्रशस्ति से विदित होता है। सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण एक बंजारे ने कराया था; ऐसी किवंदती है। जनश्रुति के अनुसार यह बंजारा जब अपनी बैलगाडी पर चांदी लादकर यहां से गुजर रहा था; तो उसका एक बैल कुएं में गिर पड़ा। तब बंजारे ने यहां स्थित जिनालय में प्रार्थना की कि यदि मेरा बैल सुरक्षित निकल आया तो मैं यहां सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण कराऊँगा। किस्मत से बैल सुरक्षित निकल आया जिससे प्रेरित हो उसने यहां सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण कराया। ___ 1. यहां मंदिर प्रांगण में ही वाट्य कक्ष में 5 फीट 4 इंच ऊँची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। जिस पर किसी तीर्थंकर का प्रतीक चिह्न नहीं है। मूर्ति के दोनों ओर अन्य तीर्थंकरों व शासन देवियों की मूर्तियां भी उकरी हुई हैं। अंदर गर्भगृह में सं. 1142 में प्रतिष्ठित भगवान ऋषभनाथ की भव्य व सुंदर मूर्ति विराजमान है। यह पद्मासन मूर्ति लगभग 1.5 फीट ऊँची है। मंदिर का शिखर नागर शैली का है व शेष मंदिरों के शिखर से सबसे ऊँचा है। 2. इस जिनालय के परिसर में भी 8 फीट ऊँची देशी पाषाण से निर्मित भगवान शान्तिनाथ की खड्गासन मूर्ति प्रतिष्ठित है। जिनालय के भीतरी भाग में भी 8.5 फीट ऊँची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इस मूर्ति के चरणपाद के पास छोटी-छोटी तीर्थंकर मूर्तियां व शासन देवी की मूर्ति बनी हैं। इस मूर्ति पर भी तीर्थंकर चिह्न अंकित नहीं है। जिससे ये विदित होता है कि ये मूर्तियां 10वीं शताब्दी के भी पूर्व की हैं; शायद तब की; जबकि मूर्तियों के पाद्मूल में तीर्थंकर चिह्न नहीं बनाया जाता होगा। _____. इस मध्य के मंदिर में मुख्य द्वार के ऊपर क्षेत्रपाल विराजमान हैं। वेदिका पर प्राचीन चरण स्थापित हैं। इसी वेदिका पर सं. 1541 में प्रतिष्ठित लगभग 8 फीट ऊँची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर की वाय भित्तियों पर 19 स्थानों पर अन्य मूर्तियां स्थित हैं। 4. बड़े बाबा का जिनालय : सं. 1001 में निर्मित इस जिनालय में 18 फीट अवगाहना की भगवान शान्तिनाथ की देशी पाषाण से निर्मित भव्य व शान्ति प्रदायक प्रतिमा खड्गासन मुद्रा में विराजमान है। नीचे शिलालेखों के दोनों ओर छोटी-छोटी दिगम्बर मूर्तियां उकरी हैं। इस विशाल मूर्ति के बायीं ओर 7 फीट ऊँची खड्गासन मुद्रा में प्रतिमा स्थित है, जिसके केश घुटने के नीचे तक बिखरे हैं। लेखक का मानना है कि यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की है; किन्तु इसे 17वें तीर्थंकर कुंथुनाथ की प्रतिमा माना जाता है; कारण कि संपूर्ण देश में अधिकतर भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा के दायीं व बायीं ओर 17 व 18 वें तीर्थंकरों की प्रतिमायें ही पाई जाती हैं। दायीं ओर इतनी ही ऊँची व भव्य भगवान अरहनाथ की 7 फीट ऊँची प्रतिमा विराजमान 86 - मध्य-पारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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