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अतिशय क्षेत्र बानपुर टीकमगढ़ ललितपुर मार्ग पर स्थित बानपुर अतिशय क्षेत्र महरौनी कस्बे से 14 किमी. दूर स्थित है। टीकमगढ़ से ललितपुर वाया बानपुर सड़क मार्ग से यह 10 किमी. की दूरी पर स्थित है। बानपुर कस्बे से क्षेत्र की दूरी महज एक किमी. है। क्षेत्र परिचय :
__ बानपुर कस्बा महाभारतकालीन है। श्री कैलाश मड़वैया 'बुंदेलखंड का विस्मृत वैभव-बानपुर" नामक पुस्तक में लिखते हैं कि महाभारत काल में इस नगर का नाम वाणपुर था। पुराणों के अनुसार यहां वाणासुर नामक दैत्य का शासन था। बाद में यह चेदि राज्य में रहा। सं. 1899 में यहां राजा मर्दन सिंह का शासन रहा। आज यह कस्बा उ.प्र. के ललितपुर जिलान्तर्गत आता है।
बानपुर की शौर्यमयी माटी में संस्कृति, प्रकृति व अध्यात्म का शाश्वत सौन्दर्य अद्भुत रूप से समाहित है। कस्बे में दो विशाल जैन मंदिर स्थित हैं। बड़ा मंदिर अत्यन्त भव्य, उत्तंग व उत्तरकालीन स्थापत्य शैली का है। यहीं से एक किमी. दूर अतिशय क्षेत्र है; जो अपनी प्राचीनता, भव्यता, शिल्पकला आदि के लिए विख्यात है। क्षेत्र के चारों ओर परकोटा बना हुआ है। प्रवेश द्वार बड़ा
और सुंदर बनाया गया है। यहां दसवीं शताब्दी से पूर्व की मूर्तियां भी विराजमान हैं। परकोटे के अंदर पांच विशाल जिनालय स्थित हैं। जिनमें देशी पाषाण से निर्मित भव्य जिनबिम्ब विराजमान हैं। सं. 1940 में मुनि श्री श्रुतसागर जी महाराज बानपुर पधारें व उन्होंने इस क्षेत्र को अपनी साधना-स्थली बनाया। यहीं से इस क्षेत्र का पुनरुद्धार प्रारंभ हुआ। अतिशय :. -- 1. एक ज्ञानी-ध्यानी संत का अचानक इस क्षेत्र पर आना व इस स्थल को अपनी साधना-स्थली बनाना वो बाद में क्षेत्र के पुनरुद्धार में रुचि लेना अपने आप में बड़ा अतिशय है।
2. मुनि श्री के आहार के दौरान एक नागराज रसोई में आकर बैठ जाते थे व मुनि श्री. के इशारा करने पर चले जाते थे। नागराज ने कभी किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाई। यह क्षेत्र का अतिशय ही था।
.. 3. वर्तमान में लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां आते हैं व उनके पूर्ण होने पर पुनः पूजन दर्शनों को आते हैं। - जिनालय : जनश्रुति के अनुसार वि.सं. 1001 के आसपास देवपाल नाम के बानपुर निवासी एक ग्वाले की पत्नी ने एक रात में जिनेन्द्र देव के स्वप्न में दर्शन किये; उसी की प्रेरणा से देवपाल ने ये मंदिर बनवाये ऐसा भगवान
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 85