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मुख्य जिनालय के बाईं ओर दालान में लगभग बारह से अधिक वेदिकाओं का निर्माण कर उनमें अनेक पद्मासन में स्थित जिनबिम्बों को, जो अतिप्राचीन हैं; स्थापित किया गया है। बायीं ओर तीन जिनालय स्थित हैं; जिनमें से एक जिनालय में मूल वेदिका के चारों ओर अनेक खड्गासन मुद्रा में स्थित जिन प्रतिमायें रखी गई हैं। ये सभी प्रतिमायें अतिप्राचीन व कलापूर्ण हैं। प्रतिमाओं की अवगाहना 5 से 7 फीट के मध्य है।
ऊपरी तल पर : ऊपरी तल पर एक नवनिर्मित चौबीसी स्थित है; जिनमें 24 तीर्थंकरों की नवीन जिन-प्रतिमायें स्थापित की गई हैं। मूल वेदिका के ऊपर भी एक वेदी पर नवीन प्रतिमायें विराजमान हैं। दायीं ओर 7-8 कक्षों में प्राचीन जिनबिम्ब स्थापित किये गये हैं। ये सभी जिन-प्रतिमायें अतिप्राचीन, कलात्मक, पाषाण-निर्मित व 2 से 4.6 फीट ऊँची हैं व अधिकांश जिनबिम्ब खड्गासन मुद्रा में हैं। यहां स्थित अधिकांश जिनबिम्बों के पाद्मूल में या तो प्रशस्तियां हैं ही नहीं या हैं भी तो वे अपठनीय हैं। यहां की मूर्ति कला खजुराहो व देवगढ़ की मूर्तिकला से साम्य रखती हैं। प्रत्येक कक्ष में तीन या तीन से अधिक जिनबिम्ब स्थापित हैं। अतिशय : . 1. यहां स्थित बावड़ी से दर्शनार्थियों को भोजन आदि हेतु बर्तनों की प्राप्ति
मांगने पर होती थी। 2. यहां आने वाले दर्शनार्थियों की शुद्ध भाव से मांगी गई मनोकामनायें पूर्ण
होती हैं। 3. भगवान शान्तिनाथ के दर्शनों से मिर्गी के रोगियों को आशातीत लाभ
पहुँचता है। 4. यहां की जिन-प्रतिमाओं की जैन व जैनेतर लोग सभी बड़ी श्रद्धा से पूजा
वंदना करते हैं। 5. यह क्षेत्र संतों व मुनिवरों की साधना-स्थली रही है। अन्य :
क्षेत्र पर एक दो मंजिला मूर्ति संग्रहालय विनिर्मित है। जिसमें सैकड़ों की संख्या में खंडित जिनबिम्ब सुरक्षित रखे गये हैं। मंदिरों के भग्नावशेष व शिखर भी यहां सुरक्षित रखे गये हैं। क्षेत्र पर भगवान शान्तिनाथ पूर्व माध्यमिक विद्यालय संचालित है। आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी क्षेत्र की ओर से संचालित है। भोजनालय की सुविधा है। यात्रियों को ठहरने के लिए धर्मशाला भी बनी हुई है।
शांति-कुन्थु-औ अरहनाथ के, जो दर्शन करता है। उसके नशते पाप, ताप, त्रय अतुल शांति वरता है।।
84 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ