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________________ अतिशय क्षेत्र सेरोन प्राचीनता, कलात्मकता, भव्यता एवं सौम्यता आदि सभी का एक ही स्थान पर अद्भुत संगम देखना हो तो दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सेरोन जी अवश्य पधारें । यह क्षेत्र दिल्ली-मुम्बई रेलवे लाइन पर स्थित ललितपुर स्टेशन से मात्र 18 किमी. दूरी पर स्थित है; जहां सड़क मार्ग से पहुँचा जाता है। सड़क मार्ग पक्का डामरयुक्त है। चंदेरी से इस तीर्थ क्षेत्र की दूरी 20 किमी. है, झांसी से यह क्षेत्र 70 किमी. दूर है, टीकमगढ़ से इस क्षेत्र की दूरी 65 किमी. है। यह प्राचीन अतिशय क्षेत्र ललितपुर (उ.प्र.) से मात्र 18 किमी. की दूरी पर, ललितपुर जखौरा वाया मनगुआं मार्ग पर स्थित है। यहां तक आने के लिए यात्रीबसों की सुविधा भी है। खैडर नदी इस क्षेत्र की परिक्रमा देकर बहती है। क्षेत्र पर प्राप्त शिलालेखों के अनुसार सं. 954 से लेकर सं. 1005 तक यहां मंदिरों का निर्माण होता रहा । सं. 1451 तक यहां का सांस्कृतिक व धार्मिक वैभव अपने चरम पर था। पश्चात् यह क्षेत्र सैकड़ों वर्षों तक उपेक्षित रहा; किन्तु सं. 1918 में यह क्षेत्र पुनः प्रकाश में आया। आज यह क्षेत्र अपनी प्राचीन धरोहर को संजोये निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर है। खेत जोतते समय, नीव खोदते समय, कुयें बनाते समय यहां आज भी मंदिरों व मूर्तियों के अवशेष व मूर्तियां प्राप्त होती रहती हैं; जो इस बात के प्रमाण हैं कि पूर्व में यह क्षेत्र सुदूर तक फैला हुआ था । क्षेत्र के आसपास फैले टीलों की खुदाई करने पर अनेक मंदिर मिल सकते हैं । यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र तपस्वियों का साधना केन्द्र रहा है व धर्म प्रभावना क्षेत्र भी रहा है; क्योंकि यहां आचार्यों, उपाध्यायों व साधुओं की मूर्तियां भी हैं । इतिहास : इस क्षेत्र का प्राचीन नाम सियाडणी था । जो विशाल नगर व व्यापार का प्रमुख केन्द्र था । लोकाख्यानों के अनुसार उदारदानी, धन कुबेर, अग्रवाल जातीय श्रावक देवपत, खेवपत एवं पाड़ाशाह द्वारा अनेक मंदिरों का निर्माण यहां श्रद्धापूर्वक कराया गया। यहां मंदिरों का निर्माण गौड़वंश, भोज व चंदेल वंश के शासन काल में भी होता रहा । श्री एस. डी. त्रिवेदी डायरेक्टर जनरल म्यूजियम झांसी ने म्यूजियम गाइड में लिखा है "सतगता प्राप्त गुप्त कालीन शिलालेख में जो लखनऊ के संग्रहालय में है के अनुसार सेरोन का प्राचीन नाम सियाडोंणी था । कुछ विद्वान इसका प्राचीन नाम शलगढ़ भी मानते हैं। वर्ष 1998-99 में एक किसान कुआं खोद रहा था; कि वहां मंदिर निकल आया; जिसमें 26 कलात्मक जिन-प्रतिमायें निकल आईं। ये सभी प्रतिमायें वर्तमान में मंदिर क्रमांक 5 में विराजमान हैं ।" वर्तमान रूप व जिनालय : यह क्षेत्र मैदानी समतल भूमि पर स्थित है । · वर्तमान में यह क्षेत्र एक विशाल परकोटे में स्थित है। इस तीर्थ क्षेत्र में प्रवेश करते असीम शान्ति का अनुभव होता है। क्षेत्र स्थित सभी वेदिकायें पुनः एक अह 82 मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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