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विराजमान है वेदिका के बायीं ओर पार्श्व भाग में भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा व शान्तिनाथ की खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा के शीर्ष भाग पर गगनधारी गंधर्व देव व नीचे यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। दायीं ओर के पार्श्व भाग में 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। ये सभी प्रतिमायें काले बेसाल्ट पत्थर से निर्मित अतिमनोज्ञ प्रतिमायें हैं। जिनके दर्शन मात्र से दर्शकों का मन प्रफुल्लित हो जाता है। इसी ओर देशी पाषाण के स्तंभ पर शीर्षभाग में चारों ओर अरिहन्त भगवंतों की प्रतिमायें उकेरी गईं हैं व नीचे की ओर पिच्छी कमण्डलु से युक्त निर्ग्रन्थ मुनि की प्रतिमा उकेरी गई है; स्थित है। ये सभी प्रतिमायें खुदाई के दौरान प्राप्त हुईं थीं। वर्तमान में मूलवेदी पर चार धातु की प्रतिमायें भी विराजमान हैं। ई. सन् 1970 में झांसी जैन समाज ने भोयरे के द्वार को बड़ा करवाया व वेदी के सामने स्थित जगह को भी एक बड़े कक्ष का आकार दिया ताकि श्रद्धालु यहीं बैठकर भजन पूजन आदि कर सकें।
2. 1978 में भोयरे के सामने श्वेत संगमरमर से निर्मित 45 फीट ऊँचे विशाल मानस्तंभ का निर्माण कराया गया व प्रतिष्ठा कराई गई।
3. 1985 में भोयरे के दायें व बायें क्रमशः दो नये जिनालयों का निर्माण कराया गया है। जिनमें क्रमशः भगवान बाहुबली व भगवान आदिनाथ की आदमकद प्रतिमायें प्रतिष्ठित की गईं हैं। इन प्रतिमाओं का मुखमंडल दर्शनार्थियों को सहज ही प्रमुदित कर देता है।
4. 1987 में श्री जम्बू साल्मलि आदिनाथ जिनालय का निर्माण किया गया।
क्षेत्र पर आधुनिक सुविधाओं से युक्त 100 से अधिक कमरों की धर्मशाला स्थित है। 1988 में आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा से यहां एक विशाल सभागार का निर्माण कराया गया, जिसमें निरन्तर धार्मिक कार्यक्रम चलते रहते हैं। इस भव्य सभागार में 3-4 हजार श्रद्धालु एक साथ बैठ सकते हैं। इस तीर्थ-क्षेत्र पर आचार्यों व मुनि संघों का सतत आना-जाना बना रहता है; जिससे यहां निरन्तर धर्म प्रभावना होती रहती हैं।
इस क्षेत्र पर स्थापित जिन-प्रतिमायें महान जैन श्रावक देवपत खेवपत द्वारा निर्मित है।
पास की पहाड़ी पर सन् 2004 में एक लाल पाषाण निर्मित भव्य व भगवान महावीर स्वामी की 11.5 फीट ऊँची विशालकाय प्रतिमा को प्रतिष्ठापित किया गया है। यह प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है; व दूर-दूर से दिखाई पड़ती है। प्रतिमा के सामने एक मड़िया जी में चरण-चिह्न भी विराजमान हैं।
यह क्षेत्र झांसी मेडिकल कॉलेज के निकट होने के कारण यहां तीर्थ यात्रियों के साथ-साथ बीमार जैन बंधु भी बड़ी संख्या में आकर ठहरा करते हैं और चिकित्सा के साथ-साथ दर्शन पूजन आदि से लाभान्वित हुआ करते हैं।
नोट : यहां हाल ही में क्षेत्र के बायीं ओर एक अन्य जिनालय का निर्माण व पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई गई है।
80 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ