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अतिशय क्षेत्र करगुआं
सांवलिया पारसनाथ दिगम्बर अतिशय क्षेत्र करगुआं एक प्राचीन तीर्थ क्षेत्र है; जहां सं. 1345 की अतिशयकारी सांवलिया पारसनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । यह तीर्थस्थली ग्राम करगुआं की 9 एकड़ भूमि पर अवस्थित है। यह झांसी रेलवे स्टेशन से लगभग 7 किमी. तथा झांसी बस स्टैण्ड से लगभग 3 किमी. की दूरी पर झांसी-कानपुर नेशनल हाइवे पर बने मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित पहाड़ी के पार्श्व भाग में स्थित है । वर्तमान में यह झांसी नगर निगम के अन्तर्गत ही आता है ।
अतिशय : लगभग 220 वर्ष पूर्व झांसी के पेशवाओं के शासन काल में नगर से लगभग 5 किमी. की दूरी पर इस क्षेत्र स्थित जमीन के ऊपर से एक बैलगाडी गुजर रही थी कि अचानक वह बैलगाडी चमत्कारिक ढंग से यहां रुक गई। तब यहां यह प्राचीन जिनालय भूगर्भ में स्थित था। गाड़ीवान असमंजस में पड़कर रात को वहीं रुक गया। उसी रात सिघई नन्हें जू (जो झांसी निवासी थे)
रात्रि के अंतिम प्रहर में सपने में देखा कि एक देवतुल्य पुरुष उनसे कह रहे हैं कि ग्राम करगुआं में जहां बैलगाडी रुक गई है; वहां जमीन में विशाल देव प्रतिमायें हैं; उन्हें निकालो। श्री नन्हें जू ने प्रातःकाल यह बात राजदरबार में बताई। राजदरबार में निर्णय लिया गया कि उस स्थल पर खुदाई कराई जाये । स्वप्न को साकार कराने के लिये जैन समाज के प्रतिष्ठित पुरुष श्री नन्हें जू राज दरबारियों तथा जैन - जैनेतर बंधुओं के साथ संबंधित स्थल पर पहुँचे व वहां खुदाई प्रारंभ करवाई। लगभग 7-8 फीट खुदाई करने पर ही प्रतिमायें दिखने लगीं। फिर क्या था ? चारों दिशायें जय-जयकार के नारों के साथ गुंजायमान होने लगीं। राजदरबार में इस घटना की सूचना भेजी गई व फिर सावधानी पूर्वक उस स्थल से 6 अतिप्राचीन जिन - प्रतिमाओं को निकाला गया। जैन समाज द्वारा सदाशयता के लिये भूमि की उसी गहराई पर शिखरबंद मड़िया का रूप देकर भोंयरे का निर्माण कराया गया तथा भूग्रह के चारों ओर 9 एकड़ भूमि पर एक परकोटा तथा दो कुयें बनवाये गये । क्षेत्र के पास ही क्षेत्र के कार्यालय एवं अन्य व्यवस्था हेतु एक हॉल भी बनवाया गया। तभी से ये क्षेत्र एक महान अतिशय क्षेत्र के रूप में विख्यात हो गया। तब से लेकर आज तक यह क्षेत्र निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
तीर्थ क्षेत्र :
1. परकोटे के मध्य में एक भोंयरा है। गर्भगृह में सामने खुदाई में प्राप्त तीन जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं। मध्य में लगभग 4 फीट ऊँची सांवलिया पारसनाथ की पद्मासन सातफणी अतिशयकारी जिन - प्रतिमा विराजमान है । बायीं ओर सातफणी भगवान पार्श्वनाथ की ही लगभग इससे कुछ कम अवगाहन वाली पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। ये प्रतिमायें अतिमनोज्ञ हैं व तेरहवीं सदी की हैं । दायीं तरफ नन्हें जू ने भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा वि. सं. 1851 में स्थापित करवाई थी; वह
मध्य-भारत के जैन तीर्थ 79