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अतिशय क्षेत्र प्यावल 10-15 वर्ष पूर्व की बात है कि एक बार एक मुनिसंघ यहां से गुजर रहा था, तो कुछ ग्रामवासियों ने इस स्थान की चर्चा की। तब मुनि श्री रात यहीं पर ठहर गए। उन्हें रात में स्वप्न आया कि यहां और भी जिन-प्रतिमायें भूगर्भ में दबीं हैं। तब प्रातः खुदाई करने पर कुछ दिगंबर जैन प्रतिमायें यहां से प्राप्त हुईं। इस तरह यह अतिशय क्षेत्र अस्तित्व में आया इसके पहले स्थानीय लोग यहां स्थित प्रतिमा को झन-झन बाबा के नाम से पूजते थे क्योंकि लोगों के अनुसार यहां झन-झन की आवाज जो वाद्य यंत्रों से निकलने वाली झन-झन की आवाज सदृश्य थी; यहां से आती थी।
यह तीर्थ-क्षेत्र सोनागिरि से 26, झांसी से 23 व करगुआं जी से वाया मवई 20 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां एक भव्य प्राचीन जिनालय स्थित है। इस क्षेत्र को स्थानीय लोग खोनी-खोना के नाम से जानते हैं व यहां पूर्ण आस्था व निष्ठा के साथ अपनी मनौतियों को मानते हैं।
इस जिनालय में दो वेदियां हैं। प्रथम वेदिका में भगवान शान्तिनाथ व भगवान कुंथुनाथ की 8 फीट ऊँची मनोज्ञ प्राचीन प्रतिमायें स्थापित हैं। उन्हीं के मध्य एक छोटी पद्मासन प्रतिमा भगवान अरहनाथ की बनी हुई है। शिला में नीचे की ओर मुनि सुकुमाल व यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियां उकेरी गईं हैं।
जिनालय के दूसरे गर्भगृह में नीचे भोंयरे में 6 फीट ऊँची भगवान मुनिसुव्रतनाथ की खड्गासन प्रतिमा विराजमान है; व यही लगभग 4 फीट ऊँची अतिमनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा भी प्रतिष्ठित है; जिन पर कोई चिह्न अंकित नहीं है; तथापि भाव-भंगिमाओं व निर्मित कला से यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतीत होती है।
78 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ .