SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वागत करती हैं। इस अत्यन्त मनोज्ञ जिनालय का नाम नंदीश्वर जिनालय है, जिसमें शास्त्रों में वर्णित दृष्टि से 52 छोटे-छोटे भव्य जिनालयों का निर्माण एक चबूतरे पर गोल आकार में किया गया है। मध्य में मेरु मंदिर भी बने हुए हैं। रचना अति सुंदर व चित्ताकर्षक है। __ भगवान चन्द्रप्रभु जिनालय में दो शिलालेख मौजूद है। एक शिलालेख मूलनायक भगवान चन्द्रप्रभु के पाद्मूलं में दबा हुआ है। इसमें पौष सुदी 15 सं. 335 का उल्लेख है व कहा गया है कि मूलसंध बलात्कारगण के श्रवणसेन व कनकसेन ने इसे बनवाया था। फिर भी यह तो निश्चित है कि इस क्षेत्र का महत्व भगवान चन्द्रप्रभु के समय से ही रहा है। क्षेत्र पर चैत्र कृष्ण 1 से 5 तक वार्षिक मेला लगता है। मेले के समय यहां बड़ी-बड़ी गाड़ियों (रलों) का स्टापेज भी रहता है। छत्तीसगढ़ व पठानकोट तो यहां हमेशा रूकती है।क्षेत्र पर पुस्तकालय, औषधालय, संग्रहालय आदि भी संचालित हैं। तलहटी में भी अनेक नये जिनालयों का निर्माण हुआ है। श्रद्धालुओं को इस क्षेत्र के दर्शन अवश्य करनी चाहिए। रेलवे स्टेशन पर हमेशा क्षेत्र की गाड़ियां क्षेत्र तक जाने के लिए उपलब्ध रहती हैं। इस क्षेत्र के विकास में आचार्यश्री विमल सागरजी (वात्सल्य-रत्नाकर) का बहुत योगदान रहा है। अनेक बार चातुर्मास कर निर्माण कार्य कराया है। पर्वत की तलहटी में क्षेत्र में प्रवेश करने के पूर्व ही एक विशाल परिसर में श्री कानजी स्वामी के भक्तों द्वारा पांचों सिद्धक्षेत्रों - कैलाशगिरि, सम्मेद शिखर, चंपापुर, पावापुर, गिरनारगिरि (अर्जयन्त गिरि) सहित श्रवणवेलगोला स्थित गोमटेश बाहुबली की अत्यन्त कलात्मक व प्रभावशाली प्रतिकृतियों का निर्माण कराया गया है व वहीं पर एक विशाल मानस्तंभ भी विनिर्मित किया गया है इसी परिसर में यात्रियों के ठहरने के लिए एक सुविधा सम्पन्न धर्मशाला व निःशुल्क भोजनालय आदि की व्यवस्था है। इस प्रकार इस क्षेत्र पर दिगंबर जैन धर्मावलंबी महानुभावों में से सभी ने अपने श्रद्धा-सुमन इस क्षेत्र पर समर्पित किये हैं और यह क्रम भविष्य में निरन्तर जारी रहेगा, ऐसा लेखक का विश्वास है। इस. क्षेत्र की प्राकृतिक छटा बड़ी ही निराली है। यहां पर बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मयूर अपनी मनोहारी ध्वनियों से सारे परिसर को गुजायमान करते रहते हैं। और एक छोटे जलाशय के चारों ओर उनका आना-जाना एवं विभिन्न प्रकार की क्रीड़ायें करते रहना यात्रियों को सदैव अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। वर्षा ऋतु में तो जब समूचा पर्वत अनेकानेक जल धाराओं द्वारा अभिसिक्त किया जाता है व पर्वत का कण-कण जिससे पूजित होता है। उस समय के उन दृश्यों को वाणी के द्वारा व्यक्त करना संभव नहीं है। बुंदेलखंड का यह तीर्थ-क्षेत्र अनुपम एवं अलौकिक है। मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 77
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy