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________________ ऊँची, बायीं वेदी पर कृष्ण वर्ण की 1 फीट अवगाहना वाली पावश्नाथ भगवान की दो प्रतिमायें हैं। सभी पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं। नीचे भोयरे में 4 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की श्वेत वर्ण की प्रतिमा विराजमान है। यहां आकर श्रद्धालु दर्शन कर नयनों को तृप्त करने के लिए थोड़ी देर को ठहर सा जाता है। मूर्ति का प्रतिष्ठाकाल सं. 1838 है। एक अन्य जिनालय में भगवान शान्तिनाथ की 1.5 फीट अवगाहना की श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा भी विराजमान है। यहीं एक वेदी में चरण-चिह्न रखे हैं; जो प्राचीन है। इसके कुछ आगे जाने पर क्षेत्रपाल की बड़ी मूर्ति विराजमान है। छत्री 10-11 थोड़ा आगे जाने पर 2 छत्रियों में चरण-चिह्न विराजमान हैं। 75. चन्द्रप्रभु जिनालय : इस जिनालय में भगवान चन्द्रप्रभु की लगभग 2.25 फीट अवगाहना वाली काले पाषाण से निर्मित प्रतिमा पद्मासन में आसीन है। इसका प्रतिष्ठाकाल सं. 1350 है। इस जिनालय में अर्धमंडप है। चन्द्रप्रभु की प्रतिमा के पास 1 फीट ऊँची अन्य तीर्थंकर प्रतिमा भी विराजमान है। 76. चन्द्रप्रभु जिनालय : इस जिनालय में हल्के पीले रंग की भगवान चन्द्रप्रभु की लगभग 7 फीट अवगाहना वाली प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है। इसी जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ, आदिनाथ व महावीर स्वामी की प्रतिमायें विराजमान हैं। गैलरी में सं. 1101 की नील वर्ण की एक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा भी कुछ अन्य प्रतिमाओं के साथ स्थित है। ये छोटी, किन्तु कलात्मक व ऐतिहासिक महत्व की हैं। ____77. महावीर जिनालय : इस तीर्थ-क्षेत्र का पर्वत पर स्थित यह अंतिम जिनालय है; जिसमें लगभग 1.5 फीट अवगाहना की कृष्ण वर्ण की भगवान महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके परिकर में देवियां हाथ में सर्प लिए हैं, विमान में दो-दो देव-देवियां प्रभु की ओर आ रहे हैं। चरणों में चरण सेवक इन्द्र चंवर लिए खड़े हैं। पीठासन में मध्य में सिह व दोनों ओर श्रावक भक्ति मुद्रा में खड़े हैं। इस मंदिर में दालान भी है। छत्री 12-16 अन्त में इन पांचों छत्रियों में विराजमान चरणों को श्रद्धासुमन अर्पित करते ही पर्वत पर स्थित जिनालयों की वंदना पूरी हो जाती है। । पर्वत पर कुछ नवनिर्मित जिनालय भी हैं। इनमें से कुछ का वर्णन हम 57वें जिनालय के बाहर विशाल प्रांगण में स्थित रचनाओं में कर चुके हैं। प्रथम व सबसे ऊपर के चन्द्रप्रभु जिनालय के मध्य दो जिनालय और बने हैं। उनमें से एक चन्द्रप्रभु भगवान का विशाल जिनालय है। यह छत्रीनुमना जिनालय है; जिसमें एक विशाल चबूतरे पर भगवान चन्द्रप्रभु की कत्थई वर्ण की विशालकाय भव्य व आकर्षक प्रतिमा विराजमान हैं। इस प्रतिमा की अवगाहना लगभग 12 फीट है। प्रतिमा पदमासन में आसीन है। ... इसके पहले पथ के दाहिनी ओर एक भव्य व मनोहारी जिनालय का निर्माण किया गया है। इस ओर मुड़ते ही दो सुंदर स्त्रियां हाथों में कलश लिए आपका 76 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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