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की कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है । प्रदक्षिणा पथ भी है। रास्ते में एक गुफा में चरण - चिह्न भी अंकित हैं ।
यहां से आगे बायीं हाथ की ओर एक रास्ता गया है । थोड़ी दूर पर वजनी शिला है; जिसको पत्थर से ठोकने पर मधुर ध्वनि निकलती है। आगे क्षेत्रपाल जी एक मढ़िया जी में विराजमान है। कुछ आगे जाने पर कुछ नीचे उतरने पर नारियल कुंड है; जो 3 फीट चौड़ा व लगभग 50 फीट गहरा है। कहा जाता है कि प्यास से व्याकुल बालक को देखकर यहां विराजे मुनिराज ने किसी श्रावक से यहां नारियल फोड़ने को कहा; तभी यहां कुंड में पानी भर गया। इसमें हमेशा जल भरा रहता है। नारियल कुंड के पास एक चरण - चिह्न भी अंकित हैं ।
70. पार्श्वनाथ जिनालय : इस जिनालय में 6 फीट अवगाहना वाली भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है । परिक्रमा पथ भी इस जिनालय में है ।
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71. सर्वतोभद्र जिनालय : इस जिनालय में चारों ओर एक ही पाषाण में भगवान आदिनाथ, वासुपूज्य, अनन्तनाथ व कुंथुनाथ भगवान की प्रतिमायें बनीं हैं । यह शिला नीले वर्ण की है।
72. पार्श्वनाथ जिनालय : लगभग 3.5 फीट अवगाहना वाली श्याम वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। प्रतिष्ठाकाल सं. 1884 है। इसी जिनालय में एक ओर अन्य वेदिका पर भगवान चन्द्रप्रभु की 5 फीट ऊँची प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिष्ठापित है । इस जिनालय में प्रदक्षिणा पथ भी है ।
78. नेमिनाथ जिनालय : कायोत्सर्ग मुद्रा में मूंगिया वर्ण की लगभग 4.5 फीट ऊँची भगवान नेमिनाथ की भव्य व मनोहारी प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है । इस प्रतिमा के सिर के ऊपर पाषाण के तीन छत्र बने हैं व चेहरे के पीछे आकर्षक भामंडल भी उत्कीर्ण है । अधोभाग में एक ओर यक्ष व दूसरी ओर यक्षिणी की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । यक्षिणी बैल पर सवार हैं । जिनालय में परिक्रमा पथ भी है।
74. महावीर जिनालय : इस जिनालय के ऊपरी भाग में सात वेदियां हैं। भोंयरे में भी तीर्थंकर प्रतिमा है । मुख्य वेदिका पर 3 फीट ऊँची श्वेत वर्ण की भगवान महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । प्रतिष्ठाकाल सं. 1838 है। बाईं ओर स्थित वेदिका पर 2 फीट ऊँची कत्थई वर्ण की भगवान महावीर स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है । दाईं ओर स्थित वेदिका पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 3 फीट अवगाहना वाली कृष्ण वर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसका प्रतिष्ठिाकाल सं. 2044 है। आगे बरामदे में सं. 1930 में प्रतिष्ठित 1.25 फीट ऊँची कृष्ण वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की फणावली युक्त प्रतिमा विराजमान है। एक दूसरे बरामदे में तीन वेदियां बनीं हुई हैं। मध्य वेदिका पर श्वेत वर्ण की भगवान चन्द्रप्रभु की 1.5 फीट
मध्य-भारत के जैन तीर्थ 75