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60. पिसनहारी की मढ़िया : तीन कटनी वाली तीन परिक्रमा-पथ सहित यह रचना कहा जाता है कि किसी आटा पीसने वाली वृद्धा ने बनवाई थी। इस जिनालय के शीर्ष भाग पर बने छोटे से जिनालय में 2 फीट अवगाहना वाली भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा सं. 1549 में हुई थी। ___61. नेमिनाथ जिनालय : 3 फीट अवगाहना वाली श्याम वर्ण की कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन यह प्रतिमा वाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की है। इसमें गर्भगृह व परिक्रमा-पथ भी है।
62. महावीर जिनालय : इस जिनालय में 6 फीट ऊँची गुंगिया वर्ण की भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है। जिनालय में परिक्रमा-पथ भी बना है। गले के दोनों ओर तीन पट्टिकायें हैं।
63. पार्श्वनाथ जिनालय : उपरोक्त गुणों वाली भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में इस जिनालय में विराजमान हैं। इसमें भी प्रदक्षिणा पथ बना है।
64. पार्श्वनाथ जिनालय : इस जिनालय में श्याम वर्ण की 1.5 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसका प्रतिष्ठाकाल सं. 1930 है। ___65. चन्द्रप्रभु जिनालय : इस जिनालय में भी पद्मासन मुद्रा में लगभग 1 फीट ऊँची श्वेत वर्ण की भगवान चन्द्रप्रभु की मूर्ति विराजमान है। इस जिनालय में प्रदक्षिणा पथ बना है।
छतरी 8 - इस छत्री में दो चरण-चिह्न बने हैं; जो किसी मुनिराज के हैं।
66. संभवनाथ जिनालय : तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का यह जिनालय सं. 1885 का है; जिसमें प्रदक्षिणा पथ के साथ भगवान संभवनाथ की श्वेत वर्ण की लगभग 1 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा आसीन है। ___67. महावीर जिनालय : लगभग 4 फीट अवगाहना की कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन यह मूर्ति अंतिम तीर्थंकर भगवान वर्धमान स्वामी की है। यह प्रतिमा मंगिया वर्ण की है। जिनालय में प्रदक्षिणा पथ भी बना है। इस जिनालय से आगे एक गुफा में एक देव की मूर्ति है; जिसकी गोद में 7 बालक हैं।
छत्री 9 - इस छत्री में दो चरण-चिह्न विद्यमान है।
68. महावीर जिनालय : इस जिनालय में तीन स्थानों पर दर्शन हैं। सामने गर्भगृह में भगवान महावीर स्वामी की कत्थई वर्ण की पद्मासन मुद्रा में आसीन है। आगे एक कोने में बनी वेदिका में भी महावीर स्वमी की पद्मासन प्रतिमा आसीन है; जिसके ऊपर 3 छत्र बने हैं। महालक्ष्मी व सर्प लिए गंधर्व भी बने हैं। प्रतिमा के पार्श्व भागों में छोटी-छोटी खड्गासन प्रतिमायें भी उत्कीर्ण हैं। पाद्मूल में चमर लिए इन्द्र खड़े हैं। प्रतिष्ठाकाल सं. 1851 है।
69. आदिनाथ जिनालय : यह प्रतिमा 3 फीट अवगाहना वाली मूंगिया वर्ण 74 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ