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इसके आगे स्थित एक वेदिका पर श्वेत वर्ण की पद्मासन मुद्रा में नवीन जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं। जो भगवान पार्श्वनाथ, चद्रंप्रभु, व शान्तिनाथ की है । अगली वेदी पर श्याम वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की व श्वेत वर्ण की भगवान चन्द्रप्रभु की नवनिर्मित प्रतिमायें विराजमान हैं ।
अंतिम छोर पर बनी वेदिका में भगवान सुपार्श्वनाथ की श्वेत धवल व मनोहारी प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इसके सिर पर नौ फणावली बनी है । यह प्रतिमा भी प्राचीन व सं. 1272 की प्रतिष्ठित है। इससे आगे भगवान श्रेयांसनाथ, विमलनाथ व कुंथुनाथ की पद्मासन प्रतिमायें इसी जिनालय में विराजमान हैं। ये सभी प्रतिमायें पद्मासन में श्वेत वर्ण की हैं ।
इस महान जिनालय से बाहर निकलने पर बाईं ओर नंग- अनंग मुनिराजों व भगवान बाहुबली की लगभग 7 फीट अवगाहना की धवल संगमरमर से निर्मित भव्य व मनोहारी प्रतिमायें पृथक-पृथक वेदिकाओं पर कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान है ।
इसी विशाल प्रांगण में एक नवीन चौबीसी का निर्माण किया गया है। इस चौबीसी की 24 मढ़ियां बनाई गई हैं। जिनमें लगभग 1 फीट अवगाहना वाली चौबीस तीर्थंकर प्रतिमायें पृथक-पृथक किन्तु क्रमशः विराजमान की गई है। मध्य में विशाल मानस्तंभ की रचना की गई है। यह मानस्तंभ 45 फीट ऊँचा है। दो चरण छत्रियां भी प्रांगण में स्थित हैं। यहां से सूर्योदय के साथ ही समूचे क्षेत्र का जो दृश्य दिखाई देता है, वह मंत्र-मुग्ध करने वाला होता ही है, परन्तु रात्रि में तो यहां से दिखाई देने वाला समूचे क्षेत्र के सभी जिनालयों का दृश्य अद्भुत एवं परम शान्ति व सुख देने वाला होता है।
इससे आगे समवशरण जिनालय है; जिसके मध्य में सर्वोच्च सिंहासन गंधकुटी में चारों दिशाओं से दिखने वाली भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमायें विराजमान हैं। इसका निर्माण शास्त्रोक्त विधि से निर्मित व आल्हादकारी है । बाहुबली जिनालय का निर्माण वीर नि. संवत् 2477, मानस्तंभ का निर्माण वीर नि. सं. 2468 व समवशरण जिनालय का निर्माण वीर नि. सं. 2493 में पूर्ण कराकर इन्हीं वर्षों में प्रतिष्ठायें की गई हैं ।
58. पार्श्वनाथ जिनालय : 6 फीट अवगाहना वाली कायोत्सर्ग मुद्रा में मूंगिया वर्ण की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा इस भव्य जिनालय में विराजमान है । इसी जिनालय में दो अन्य वेदिकाओं पर भगवान आदिनाथ व महावीर स्वामी की 6 फीट अवगाहना वाली प्रतिमायें भी कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं ।
58 (अ) समवशरण जिनालय : दायीं ओर स्थित इस जिनालय में पीतल की रचनायें व जिनबिम्ब स्थित हैं ।
59. आदिनाथ जिनालय : इस जिनालय में भी भगवान आदिनाथ की 6 फीट ऊँची मूंगिया वर्ण की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है। इस जिनालय में प्रदक्षिणा पथ बना है ।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ 73