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महावीर स्वामी की यह प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में पीत वर्ण की है। ऊपर के पार्श्व भागों में दो देवियां पुष्पमालायें लिये आसमान में श्रीजी की ओर बढ़ रही हैं । नीचे दोनों ओर दो-दो पद्मासन मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं । मूर्ति के अधोभाग में चामर लिए इन्द्र खड़े हैं । अर्धमंडप भी इस जिनालय में हैं ।
17. पार्श्वनाथ जिनालय : पद्मासन मुद्रा में 1.25 फीट अवगाहना की श्वेत वर्ण की प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की है व सं. 1745 में प्रतिष्ठित है ।
18. आदिनाथ जिनालय : भगवान आदिनाथ की यह पद्मासन प्रतिमा श्वेत वर्ण की है व 1.25 फीट अवागहाना वाली है व सं. 1923 की प्रतिष्ठित है ।
19. नेमिनाथ जिनालय : कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानमग्न यह तीर्थंकर प्रतिमा श्याम वर्ण की है व लगभग 2.25 फीट अवगाहना वाली है । इसके बायीं ओर गजारुढ़ यक्ष व दायीं ओर नृत्य मुद्रा में यक्षिणी हैं। मूर्ति के पादमूल में प्रशस्ति नहीं है। प्रतिमा प्राचीन व मनोज्ञ है ।
20. चन्द्रप्रभु जिनालय : पद्मासन मुद्रा में 1.4 फीट ऊँची श्वेत वर्ण की वीर नि. सं. 2470 में प्रतिष्ठित भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। मंदिर के तीन ओर बरामदे व बीच में आंगन है ।
21. पार्श्वनाथ जिनालय : इस जिनालय में श्वेत वर्ण की लगभग 1.25 फीट अवगाहना वाली भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में आसीन है । प्रतिष्ठाकाल सं. 1921 है ।
22. अरहनाथ जिनालय : बादमी वर्ण की लगभग 5 फीट अवगाहना वाली विचित्र किन्तु आकर्षक केशवलय युक्त कायोत्सर्ग मुद्रा में यह प्रतिमा भगवान अरहनाथ स्वामी की है। सिर के ऊपर तीन छत्र व पार्श्व भागों में गज लक्ष्मी उत्कीर्ण हैं। ऊपरी भाग पर पुष्पमाल लिए आकाशगामी देव हैं व नीचे पार्श्व भागों में चामरधारी इन्द्र खड़े हैं । प्रतिमा अतिमनोज्ञ है ।
23. सुपार्श्वनाथ जिनालय : पद्मासन में श्याम वर्ण की 1.4 फीट अवगाहना वाली नौ सर्प फणावली से युक्त यह प्रतिमा सं. 1884 में प्रतिष्ठित भगवान सुपार्श्वनाथ की है। इस मंदिर में बरामदे व आंगन भी हैं । बरामदे में सप्त फणावली युक्त भगवान पार्श्वनाथ की 1.25 फीट ऊँची प्रतिमा पद्मासन में आसीन है । प्रतिष्ठाकाल सं. 1910 हैं।
24. नेमिनाथ जिनालय : इस जिनालय में कायोत्सर्ग मुद्रा में काले पाषाण से निर्मित 4 फीट अवगाहना वाली भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। सिर के ऊपर प्रस्तर निर्मित तीन छत्र व सिर के पीछे भामंडल सुशोभित है | नीचे दो करवद्ध श्रावक खड़े हैं । प्रतिष्ठाकाल सं. 1986 है। परिक्रमा पथ भी बना है ।
25. मल्लिनाथ जिनालय : यह पद्मासन प्रतिमा 1.5 फीट ऊँची श्याम वर्ण की सं. 1925 में प्रतिष्ठित है । दो प्रदक्षिणा पथ जिनालय में बने हैं। गर्भगृह 4 स्तंभों पर आधारित हैं ।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ = 67