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________________ 26. नेमिनाथ जिनालय : इस जिनालय में श्वेत वर्ण 1 फीट अवगाहना वाली भगवान नेमिनाथ स्वामी की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। 27. नेमिनाथ जिनालय : कृष्ण वर्ण की पाषाण निर्मित, पद्मासन मुद्रा में स्थित 21 इंच अवगाहना वाली भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। 28. चन्द्रप्रमु जिनालय : 5.25 फीट अवगाहना की रंग-बिरंगी भव्य व आकर्षक यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान चन्द्रप्रभु की है, जिसके सिर पर तीन छत्र बने हैं। सिर के पार्श्व भागों परं गंधर्व देव पुष्पवर्षा कर रहे हैं। नीचे सौधर्म व ईशान इन्द्र चमर लिए भक्ति मुद्रा में खड़े हैं। मंदिर में प्रदक्षिणा पथ है। गर्भगृह चार स्तंभों पर आधारित मंडपनुमा हैं। 29. पार्श्वनाथ जिनालय : यह प्रतिमा भी रंग-बिरंगी भव्य व कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह 6.25 फीट ऊँची है। सिर के पार्श्व भागों पर गजलक्ष्मी व पुष्पमाल लिए आकाशगामी गंधर्व देव उत्कीर्ण हैं। मंदिर में आंगन व अर्धमंडप भी बना है। मंदिर के बाहर बगल में एक कुंड व चबूतरा बना है। ____30. चन्द्रप्रभु जिनालय : रंग-बिरंगी वर्ण की 6 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित यह प्रतिमा भगवान चन्द्रप्रभु की है। सिर पर तीन छत्र शोभा बढ़ा रहे हैं। ऊपर गज लक्ष्मी व उनके निकट श्रावकगण खड़े हैं। अधोभाग में चमरधारी इन्द्र हैं। प्रदक्षिणा पथ भी बना है। 31. नेमिनाथ जिनालय : इस जिनालय में काले पाषाण से निर्मित 4 फीट ऊँची सिर पर तीन छत्रों से सुशोभित भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है। दोनों ओर गजलक्ष्मी बनी हैं। एक ओर यक्ष उत्कीर्ण है; जो कमल पर आसीन है दूसरी ओर सिंह पर आरुण यक्षिणी बनी है। देवी के नीचे आम्रवृक्ष है। इस जिनालय में अर्धमंडप भी बना है। प्रतिमा अति सुंदर है। इस जिनालय के आगे जल मंदिर में चारों ओर भगवान महावीर स्वामी की चार प्रतिमायें विराजमान हैं। 32. अजितनाथ जिनालय : इस जिनालय में 2 फीट अवगाहना की श्वेत वर्ण की भगवान अजितनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। सिर के ऊपर तीन छत्र व पार्श्व भागों में अष्ट मंगल द्रव्य भी चट्टान में उत्कीर्ण है। नीचे पार्श्व भागों में चामर लिए इन्द्र खड़े हैं। प्रतिष्ठाकाल सं. 1992 है। 33. सुमतिनाथ जिनालय : यह जिनालय उपरोक्त जिनालय जैसा ही है; जिसमें श्वेत वर्ण की 2 फीट अवगाहना वाली भगवान सुमतिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। इसके आगे ज्ञान गुदड़ी शिला है। छत्री क्र. 4-थोड़ा ऊपर जाकर एक छत्री बनी है। जिसमें चरण उत्कीर्ण हैं। सं. 1902 भी लिखा है। 34. आदिनाथ जिनालय : इस जिनालय में काले पाषाण में उत्कीर्ण 6 फीट अवगाहना वाली कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन भगवान आदिनाथ की मनोज्ञ व 68 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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