SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24, 25 व 26. जैसवाल जैन समाज राजाखेड़ा धर्मशाला के तीन जिनालय नीचे दो, प्रथम तल पर एक सभी जिनालय शिखर सहित हैं। सबसे प्राचीन जिनालय क्र. 15 जो बीसपंथी आम्नाय चंपाबाग ग्वालियर का है सं. 800 का है; जिसे ग्वालियर के भट्टारक ने बनवाया था। इस जिनालय के पास एक बड़ी बावरी है। यहां के जिनालय में मूलनायक भगवान अरहनाथ की प्रतिमा विराजमान है। पर्वत पर प्राचीन 66 जिनालय, 13 छत्रियां व 5 क्षेत्रपाल के स्थान हैं। यहां कुछ नवीन जिनालय की रचना भी हुई है। इस क्षेत्र की व्यवस्था श्री दिगंबर जैन सोनागिरि सिद्धक्षेत्र संरक्षिणी कमेटी द्वारा की जाती है। तलहटी में स्थित जिनालयों की व्यवस्थायें अलग-अलग कमेटियां देखती है। रात्रि में बिजली की रोशनी में यह पर्वतराज किसी अलकापुरी से कम नहीं लगता। प्राकृतिक वृक्षों के बीच बंदर व मोर सर्वत्र विचरते व अपनी सुरीली आवाज से क्षेत्र को गुंजायमान करते रहते हैं। पर्वत पर स्थित जिनालयों का परिचय निम्न प्रकार है___1. नेमिनाथ जिनालय : क्षेत्र का यह प्रथम जिनालय क्षेत्र मार्ग के दायें ओर एक विशाल चबूतरे पर बना है। इस जिनालय में 5 फीट ऊँची कायोत्सर्ग मुद्रा में कृष्ण वर्ण की सं. 1218 में प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। 2. नेमिनाथ जिनालय : यह जिनालय क्षेत्र मार्ग के ऊपर बना है जहां कुछ सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है। इस जिनालय में भी भगवान नेमिनाथ की 2.25 फीट अवगाहना वाली कृष्ण वर्ण की सं. 1888 में प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। ____3. आदिनाथ जिनालय : इस जिनालय में श्वेतवर्ण की लगभग 1.5 फीट की अवगाहना वाली भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा सं. 1961 में हुई थी। छत्री क्र. 1 इस छत्री में मुनिराजों के चरण विराजमान हैं। 4. आदिनाथ जिनालय : इस जिनालय के गर्भगृह में सं. 1855 में प्रतिष्ठित भगवान आदिनाथ की लगभग 1 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा भी श्वेत वर्ण की है। छत्री क्र 2- इस छत्री में सं. 1888 में प्रतिष्ठित 24 तीर्थंकरों के चरण-चिह्न रखे हैं। ____5. पार्श्वनाथ जिनालय : लगभग 1.25 फीट की अवगाहना की श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है; जो भगवान पार्श्वनाथ की है व सं. 1548 की प्रतिष्ठित है। 6. चन्द्रप्रभु जिनालय : सं. 1930 में प्रतिष्ठित लगभग 1 फीट ऊँची भगवान चन्द्रप्रभु की पद्मासन प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। 7. नेमिनाथ जिनालय : सं. 1889 में प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की मध्य-भारत के जैन तीर्य - 65
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy