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सिद्ध क्षेत्र सोनागिर
स्वर्णगिरि, श्रमणगिरि या सोनागिरि सिद्धक्षेत्र आगरा-भोपाल रेलवे लाइन पर एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है। इस क्षेत्र की दूरी ग्वालियर से 65 किलोमीटर तथा दतिया से 11 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से क्षेत्र तक पक्की सड़क है व सोनागिरि से क्षेत्र तक की दूरी 4 किलोमीटर है। यह तीर्थ क्षेत्र एक सुरम्य प्राकृतिक पहाड़ी पर स्थित है । तलहटी में भी अनेक जिनालय हैं ।
इस सिद्धक्षेत्र से नंग-अनंग महामुनिराजों के अलावा 5.5 करोड़ और मुनिराजों ने भी मोक्ष प्राप्त किया था । प्राकृण निर्वाण काण्ड में लिखा हैगंगागंग कुमार कोटी पंचह मुणिवरा सहिआ । सोनागिरि वर सिहरे णिब्वाणगया णमो तेसिं । ।
कुछ जगह संवणागिरि या सुवण्णगिरि का भी उल्लेख आता है जिनके अर्थ संस्कृत में क्रमशः श्रमणगिरि व सुवर्णगिरि होते हैं । यह श्रमणों की तपोभूमि रही है । नंग- अनंग मुनिराज योधेय देश के श्रीपुर नगर के नरेश अरिंजय विशाल के पुत्र थे। एक बार मालवा देश के अरिष्टपुर में आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु जी का समवशरण आया। समाचार सुन राजा धनंजय, अमृतविजय, नंग-अनंग आदि उनके समवशरण में पहुँचे व सबने चन्द्रप्रभु भगवान के चरणों की पूजा की, वहीं भगवान का हितोपदेश हुआ; जिसे सुनकर उक्त सभी राजा व राजकुमारों को वैराग्य हो गया। उन सबने वहीं भगवान के चरणों में मुनि दीक्षा ले ली और भी 1500 राजाओं ने इस अवसर पर दीक्षा ली ।
एक बार उज्जैनी नरेश श्री दत्त की रानी के कोई संतान नहीं थी । तब दो चारणरिद्धि धारी मुनियों ने राजा से यात्रासंघ निकालकर स्वर्णगिरि की यात्रा करने को कहा। जब यात्रा संघ वहां पहुँचा; तो भगवान चन्द्रप्रभु भगवान का समवशरण स्वर्णगिरि पर विराजमान था। तब इनको सुवर्णभद्र नामक पुत्र की प्राप्ति हुई ।
एक बार मुनि नंग- अनंग भी अनेक मुनियों के साथ विहार करते हुए इस पावन पर्वत पर पधारे। यहां उन्होंने घोर तपश्चरण कर केवलज्ञान की प्राप्ति की । बाद में वे अनेक मुनिराजों के साथ इसी पर्वत से मोक्ष पधारे।
कुछ समय पश्चात् राजा श्री दत्त के पुत्र सुवर्णभद्र ने भी एक विशाल तीर्थयात्रा संघ निकाला । दर्शन कर वापिस आने के बाद कुछ दिनों पश्चात् सुवर्णभद्र को भी वैराग्य प्राप्त हो गया । उन्होंने मुनिव्रत धारण कर इसी पर्वत पर तपस्या कर कर्मों का क्षय किया व पांच हजार मुनियों के साथ सोनागिरि से ही मोक्ष पधारे।
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इस तीर्थ क्षेत्र पर कुछ मिलाकर 132 से भी अधिक जिनालय हैं । अकेले पर्वत पर ही चौबीसी मिलाकर लगभग 105 से अधिक जिनालय है । तलहटी में भी 27 शिखरबंद भव्य व आकर्षक जिनालय हैं । पर्वत पर सीधी चढ़ाई न
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मध्य-भारत के जैन तीर्थ 63