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अतिशय क्षेत्र अजयगढ़
पन्ना जिले की तहसील मुख्यालय अजयगढ़ पन्ना से 20 किलोमीटर दूर तथा विश्वप्रसिद्ध दुर्ग कालिंजर से मात्र 32 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। अजयगढ़ कस्बे के समीप प्राचीन अजयगढ़ का किला एक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है। किले के उत्तरी द्वार को कालिंजर द्वार तथा द.पू. द्वार को तारहौनी द्वार के नाम से जाना जाता है। उत्तरी द्वार में प्रवेश करते ही दुर्ग की चट्टानों में दो बड़े गर्त हैं; जिन्हें गंगा यमुना के नाम से जाना जाता है। इनमें हमेशा पानी भरा रहता है। दुर्ग के मध्य में एक बड़ा तालाब है, जिसे अजयपाल का तालाब कहते हैं।
इसी तालाब के एक किनारे एक अत्यन्त प्राचीन जिनालय में भगवान शान्तिनाथ की विशाल, मनोज्ञ, आकर्षक व अतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है, जो कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित है। यह प्रतिमा 11वीं सदी की है। इसी जिनालय के पास अन्य जिनालयों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। आज भी जंगल के बीच सुनसान किले के अंदर यह प्रतिमा शान्ति का संदेश दे रही है।
तारहौनी द्वार के पास की चट्टानों में अनेक पंक्तियों में लगभग 50 जैन मूर्तियां पद्मासन अवस्था में विराजमान हैं। इन प्रतिमाओं के पास गाय, बछड़ा व सुखासन में चतुर्भुज देवी प्रतिमा भी उत्कीर्ण है। जिसकी गोद में एक बालक है। यह भगवान नेमिनाथ की यक्षिणी देवी अम्बिका की मूर्ति हो सकती है।
किले में एक भव्य मानस्तंभ भी बना हुआ है, जिसके ऊपर सैंकड़ों जैन प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। पर्वत के चारों ओर तलहटी में व जंगल में भी अनेक जिन प्रतिमायें यहां-वहां पड़ी हैं।
इस किले में 16 शिलालेख उपलब्ध हुए हैं, जो वि. सं. 1208 व 1372 के बीच के चंदेल राजाओं के काल के हैं। चंदेल राजा चन्द्रवंशी थे। एक शिलालेख में चन्द्रवंश में उत्पन्न राजा कीर्ति वर्मा, सुलक्षणा वर्मा, जय वर्मा, पृथ्वी वर्मा, मदन वर्मा, त्रैलोक्य वर्मा, यशोवर्मा व वीर वर्मा के नाम अंकित हैं।
62 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ