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अतिशय क्षेत्र श्रेयांसगिरि (सीरागिरि) यह कला तीर्थ अपने आप में अनूठा है। यह तीर्थ-क्षेत्र झांसी-रीवा सड़क मार्ग पर पन्ना जिले में स्थित देवेन्द्र नगर कस्बे से सलेहा तथा वहां से आगे ग्राम नचना के समीप स्थित है। यहां तक पक्का सड़क मार्ग है। यहां पहुंचने से पूर्व विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो के दर्शन किये जा सकते हैं। पन्ना वन्य अभ्यारण की सैर की जा सकती है एवं पन्ना जिले की हीरा खदानों को भी देखा जा सकता है। यह तीर्थ स्थल देवेन्द्र नगर से 40 किलोमीटर व पन्ना से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह अतिप्राचीन तीर्थ-क्षेत्र सुरम्य पर्वत पर स्थित है।
परिचय- इस तीर्थ-क्षेत्र का प्राचीन नाम सीरागिरि है; जो मधु मक्खियों के छत्तों से झरने वाले मधु “सीरा" के नाम से पड़ा। पहले यहां घना जंगल था। इस तीर्थ-क्षेत्र को प्रकाश में लाने का प्रमुख श्रेय परम पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज को है, जिन्होंने यहां अपना प्रथम चातुर्मास गुनौर ग्राम में किया था, जो इस क्षेत्र के निकट है। तभी यह महान तीर्थ-क्षेत्र पुनः प्रकाश में आया। मुनिराज के चरण रज इस भूमि पर पड़ने से ग्राम गुनौर का जल संकट हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गया। यह इस तीर्थ-क्षेत्र का एक महान अतिशय था। धीरेधीरे यहां के मूल निवासियों की दरिद्रता भी दूर होने लगी; यह इस तीर्थ-क्षेत्र का दूसरा अतिशय था। इस तीर्थ-क्षेत्र में अतिप्राचीन जिनबिम्ब अकृत्रिम गुफा मंदिरों में अपने मूल स्वरूप में स्थित है, यहां आने पर व जिनबिम्बों के दर्शन करने पर दर्शनार्थियों को एक अपूर्व सुख व शान्ति की अनुभूति होती है। यह इस तीर्थ-क्षेत्र की एक विशेषता है।
किन्तु इन अतिप्राचीन अकृत्रिम चैत्यालयों को जो पहाड़ी के मध्य व ऊपरी भाग में स्थित हैं; पहाड़ी पर स्थित पत्थर की खदानों में किए जाने वाले विस्फोटों से क्षति होना प्रारंभ हो गया है। यदि समय रहते इन खदानों को बंद नहीं किया गया तो ये अकृत्रिम चैत्यालय धीरे धीरे अपना मूल स्वरूप खो देंगे। इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार विकास हेतु सर्वप्रथम परम पूज्य मुनि श्री सुपार्श्व सागर ने उल्लेखनीय योगदान किया था।
इस क्षेत्र के उद्धार में आचार्य विराग सागर जी ने विशेष रुचि ली। सन् 1991 के यहां किए गए प्रथम चातुर्मास में आचार्य श्री विराग सागर जी ने इस क्षेत्र को श्रेयांसगिरि नाम दिया। यहीं से इस क्षेत्र के विकास की गाथा भी प्रारंभ होती है। आपने पुनः इस क्षेत्र को जन-जन की निगाह में लाने के लिए इस क्षेत्र पर सन् 2000 के आसपास अपना दूसरा चातुर्मास भी संपन्न किया।
जिनालय- यह तीर्थ-क्षेत्र ग्राम नचना जो चतुर्मुखी शंकर की मूर्ति तथा बौद्ध संस्कृति के प्राचीन अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है, से दक्षिण की ओर एक सुरम्य 58 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ .