________________
काठन नदी के पार उसी के तट पर सिद्धायतन नामक स्थल विकसित किया गया है । यह एक विशाल परिसर में स्थित धर्मशाला व कार्यालय सहित है। प्रवेश द्वार के पास भव्य मानस्तंभ की रचना है। पास ही समवशरण जिनालय स्थित है। आगे धवल संगमरमर से निर्मित एक भव्य मनोहारी व कलात्मक जिनालय का निर्माण किया गया है। यह जिनालय दो मंजिला है। मूल मंदिर में नीचे सीमंधर स्वामी की लगभग 6 फीट ऊँची प्रतिमा प्रतिष्ठित है व इसी से संबंधित विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों के जिनालय भी हैं। ऊपरी तल पर तीन स्थानों पर दर्शन हैं। बीच में भगवान ऋषभनाथ जी के दोनों ओर भरत - बाहुबली की प्रतिमायें हैं। एक तरफ मुनि गुरुदत्त की प्रतिमा है ।
अन्य जानकारियां
1. क्षेत्र पर प्रशिक्षण संस्थान 1999 से संचालित है, जो दिगंबर तीर्थ क्षेत्र कमेटी द्वारा संचालित संस्था है ।
2. क्षेत्र पर निःशुल्क धार्मिक औषधालय भी संचालित है।
3. यात्रियों की सुविधा के लिए क्षेत्र पर एक भोजनालय संचालित है ।
4. इस पर्वत राज पर रियासत के समय से शिकार पूर्णतः प्रतिबंधित है। 5. इस तीर्थ क्षेत्र को पूज्य क्षु. श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा लघु सम्मेद शिखर की संज्ञा दी गई ।
6. यहां फाल्गुन के प्रारंभ में मेला लगता है ।
7. क्षेत्र पर पुष्पदन्त संस्कृत विद्यालय भी चलता है।
8. यह सिद्धक्षेत्र है एवं यहां दर्शनों से अपूर्व शान्ति मिलती है ।
अतिशय क्षेत्र पार्श्वगिरि (भगवां छतरपुर)
यह अतिशय क्षेत्र बड़ामलहरा - घुवारा सड़क मार्ग पर स्थित है। इस क्षेत्र की दूरी टीकमगढ़ से 50 किलोमीटर, द्रोणगिरी से 10 किलोमीटर है। यहां गांव में दो प्राचीन जिनालय स्थित हैं, जिनमें अतिशयकारी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं।
पहाड़ी पर श्री सम्मेद शिखर तीर्थ क्षेत्र की रचना की प्रतिकृति प्रस्तुत कर वेदियों पर चरण बनाए गये हैं। यहां एक जिनालय भी स्थित है। चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता - बिखरी पड़ी है।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ 57