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________________ दिशा में चार देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मानस्तंभ के चारों ओर गहराई है। यह मानस्तंभ लगभग 10 फीट ऊँचा है। 28. अरहनाथ जिनालय- भगवान अरहनाथ की पाषाण निर्मित प्राचीन प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। 29. पार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ का जिनबिम्ब स्थापित है। 30. वर्धमान जिनालय- इस जिनालय में भगवान महावीर स्वामी की खड्गासन प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह जिन-प्रतिमा पाषाण निर्मित अतिप्राचीन है; जिसमें प्रशस्ति भी नहीं दी गई है। 31. सुपार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में लगभग 2.5 फीट ऊँची कृष्ण वर्ण की भगवान सुपार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह सं. 1907 की प्रतिष्ठित है। ____32. आदिनाथ जिनालय- इस जिनालय में प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 33. आदिनाथ जिनालय- इस जिनालय में सं. 1548 में प्रतिष्ठित भगवान आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 34-35. इन दोनों जिनालयों में भगवान आदिनाथ जी व भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। 36. यह जिनालय नया बना है व अभी अधूरा है। इसमें गुरुदत्त मुनिराज की एक भव्य व विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है। 37. इस जिनालय में सं. 1844 में प्रतिष्ठित भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। ____38. इस जिनालय में सं. 1844 में प्रतिष्ठित शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 39. पार्श्वनाथ जिनालय- यह जिनालय काफी प्राचीन है, जिसके अंदर सं. 1545 में प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। एक अन्य मूर्ति पर प्रशस्ति भी नहीं है। 40. महावीर जिनालय- सं. 1881 में प्रतिष्ठित भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान है। 41-46. इन जिनालयों में क्रमशः भगवान चन्द्रप्रभु, भगवान नेमिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान चन्द्रप्रभु की भव्य व मनोहारी प्रतिमायें विराजमान हैं। जिसमें दर्शन कर मन को असीम शान्ति का अनुभव होता है। भगवान चन्द्रप्रभु-जी का जिनालय पर्वत स्थित जिनालयों में अंतिम जिनालय है। चन्द्रप्रभु की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में श्वेत संगमरमर से निर्मित है। 56 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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