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सिद्ध क्षेत्र द्रोणागिरि सागर-छतरपुर राजमार्ग पर स्थित छतरपुर जिले की बड़ामलहरा तहसील मुख्यालय से सिद्धक्षेत्र मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र बड़ामलहरा-घुवारा पक्के सड़क मार्ग पर स्थित है। यह टीकमगढ़-शाहगढ़ मार्ग पर घुवारा तहसील मुख्यालय से मात्र 22 किलोमीटर, पपौरा जी से 56 किलोमीटर, खजुराहो से 104 किलोमीटर, नैनागिरि से 88 किलोमीटर व कुंडलपुर से 147 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस सिद्धक्षेत्र पर पर्वत की तलहटी में एक विशाल चौबीसी एवं दो जैन मंदिर स्थित हैं। इनमें चौबीसी नवनिर्मित है। पहाड़ी पर लगभग 30 जिनालय बने हैं। यह सिद्धक्षेत्र दशार्ण (घसान) की सहायक नदियों के बीच सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी पर चारों ओर प्राकृतिक नीरवता के बीच प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। इस क्षेत्र के एक ओर श्यामली (श्यामरी) नदी बहती है तो दूसरी ओर कलकल नाद करती काठन (चन्द्रभागा) नदी बहती है।
इस सिद्धक्षेत्र से गुरुदत्तादि मुनिश्वरों के अलावा 3.5 करोड़ मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया था, जिससे इस क्षेत्र का कण-कण अति पवित्र है। यहां से कुछ दूरी पर एक खेत में मुनि श्री की साधना-स्थली स्थित है; जहां आज भी किसान खेती नहीं करते हैं। कहते हैं यहीं मुनिराज पर उपसर्ग आया था। पर्वत पर स्थित गुफा गुरुदत्त मुनिराज की तपोभूमि थी। इस गुफा में कुछ दूर तक यात्री आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। प्राकृत निर्वाणकांड में निम्नांकित पद्य इस क्षेत्र को सिद्ध-क्षेत्र सिद्ध करता है।
फलहोड़ी बड़गामे पश्चिम भायम्मि द्रोणगिरि सिहरे। गुरुदत्तादि मुणिन्दा णिव्वाण गया णमो तेसिं।।
मूलसंघ बलात्कारगण सूरत शाखा के प्रसिद्ध भट्टारक विद्यानन्दि के शिष्य भट्टारक श्रुतसागर जी ने बोधप्राभृत को 27वीं गाथा की टीका में इस तीर्थ-क्षेत्र का उल्लेख किया है (15वीं सदी)। निर्वाणकांड और निर्वाण भक्ति के अलावा इस तीर्थ-क्षेत्र का उल्लेख भगवती आराधना, आराधना सार, आराधना कथा कोष आदि ग्रंथों में भी मिलता है। भगवती आराधना में आचार्य शिवकोटि लिखते हैं
हत्यिणपुर गुरुदत्तो संविलिथालीव दोणिमत्तम्मि। उत्झन्तो अधिमासिय पडिपण्णो उत्तम अळं। 11552।।
अर्थात् हस्तिनापुर के निवासी गुरुदत्त मुनिराज द्रोणगिरि पर्वत के ऊपर संभलि थाली के समान जलते हुए उत्तम अर्थ को प्राप्त हुए। 52 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ