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की प्रतिमा विराजमान है। यह पद्मासन मुद्रा में है। इसके पार्श्व भागों में भगवान चन्द्रप्रभु की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान हैं।
53. यह अतिप्राचीन जिनालय है। यहीं 100 वर्ष पूर्व स्वप्न देकर 13 प्रतिमायें भूगर्भ से प्रकट हुई थी। 9 फण की भगवान सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा भी यहां विराजमान है। यहां सं. 1109 का एक शिलालेख भी उत्कीर्ण है। भूगर्भ में प्राप्त 9 प्रतिमायें मुख्य वेदी पर विराजमान है। यहीं रक्त वर्ण की खड्गासन पाषाण निर्मित एक प्रतिमा भी स्थापित है। इन मूर्तियों में एक गोमेद यक्ष व अम्बिका देवी की है जो 3 फीट ऊँची है। यह देशी पाषाण की भूरे रंग की है। देवी गोद में बालक लिये हुए है। यक्ष व यक्षिणी दोनों ही अलंकृत दशा में है। आम्र शाखाओं पर एक वानर दिखाई देता है। उसके ऊपर भगवान नेमिनाथ की पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है। यहीं 4 फीट ऊँची एक भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा भी है। जिसके सिर पर तीन छत्र बने हैं। दोनों पार्श्व भागों में आकाशगामी गंधर्व है। प्रतिमा के चरणों के दोनों ओर चमर लिए इन्द्र विनयवत मुद्रा में खड़े हैं।
54. भगवान शान्तिनाथ जिनालय- इस जिनालय में पद्मासन मुद्रा में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। ___55. कुंथुनाथ जिनालय- इसमें पद्मासन मुद्रा में भगवान कुंथुनाथ की प्रतिमा विराजमान है।
56. पार्श्वनाथ चौबीस जिनालय- यह इस तीर्थ-क्षेत्र का अंतिम नवनिर्मित विशाल जिनालय है। बादामी रंग की भगवान पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा इस जिनालय का मूल आकर्षण है। यह प्रतिमा शास्त्रोक्त अवगाहना वाली बिना फणावली युक्त लगभग 11 फीट ऊँची है। मूर्ति की भाव-भंगिमायें व शान्त मुद्रा देखते ही बनती है। यह प्रतिमा तीन छत्र, भामंडल व चमरेन्द्रों सहित है। इसकी प्रतिष्ठा वीर नि. सं. 2478 में हुई थी। चरण चौकी पर सर्प बना हुआ है वाद्यवादक प्रतिमा के अधोभाग में स्थित है। इसी विशाल कक्ष में चौबीसी बनी है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमायें क्रमिक रूप से विराजमान है। हॉल के एक किनारे लगभग 5.5 फीट अवगाहना की खड्गासन मुद्रा में भगवान बाहुबली की प्रतिमा विराजमान है। जबकि दूसरी ओर यहां से मोक्षप्राप्त हुए मुनिराजों की 5 खड्गासन प्रतिमायें विराजमान हैं। ये प्रतिमायें मुनिश्वर वरदत्त, शायरदत्त, मुनीन्द्रदत्त, इन्द्रदत्त व गुणदत्त की हैं।
क्षेत्र पर यात्रियों की सुविधा के लिए आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त जैनधर्मशालायें भी है। साधुओं को ठहरने के लिए संत-निवास है। इस क्षेत्र पर प्रतिवर्ष अगहन सुदी 11 से 15 तक वार्षिक मेले व रथोत्सव का आयोजन किया जाता है। यद्यपि क्षेत्र स्थित तालाब में मछली पकड़ने व शिकार के प्रतिबंध का बोर्ड अवश्य लगा है; किन्तु स्थानीय लोग तालाब से बेरोकटोक मछली पकड़ते देखे जाते हैं, जो अवैध हैं व जिसे रोकने का प्रयास राज्य शासन द्वारा किया जाना चाहिए।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ- 51