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________________ क्षेत्र वंदना 1. बड़ा प्रलहरा की ओर से क्षेत्र में प्रवेश करते ही सेंदपा ग्राम में प्रवेश के पूर्व श्यामली नदी के किनारे मैदानी भाग पर एक भव्य चौबीसी का नव निर्माण किया गया है। इस चौबीसी में चौबीस तीर्थंकरों की पृथक-पृथक वेदिकाओं पर लगभग 4 फीट अवगाहना वाली चौबीस प्रतिमायें विराजमान हैं। चौबीसी के मध्य स्थित एक वेदिका पर एक बड़े हॉल में 6 फीट अवगाहना की भगवान आदिनाथ की भव्य व मनोहारी प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा के दोनों ओर दो जिनप्रतिमायें कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर के बाहर एक विशाल प्रवचन हॉल स्थित है। जहां हजारों श्रद्धालु एक साथ बैठकर प्रवचन लाभ ले सकते हैं। कुछ दूरी पर ही संत निवास बना हुआ है, जहां मुनिगण शान्त वातावरण में घोर तपश्चरण करते हैं। 2. अहाते के बाहर जाने पर सड़क के दूसरी ओर उदासीन आश्रम एक पृथक अहाते में स्थित है। इस आश्रम में ब्रह्मचारी भाई-बहनें रहकर साधना व धर्मामृत का - पान करते हैं। इसी अहाते में एक नव निर्मित भगवान पार्श्वनाथ जिनालय व एक वर्धमान जिनालय भी हैं। यहां से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर सड़क के बायीं ओर कमेटी कार्यालय व अनेक धर्मशालायें स्थित हैं। यहां यात्रियों को ठहरने के लिए सभी आधुनिक सुविधायें उपलब्ध हैं। यह सभी तलहटी में ही स्थित हैं। 3. धर्मशाला के बाहर एक प्राचीन भव्य जिनालय स्थित है। जिनालय में प्रवेश करते ही सामने स्थित प्रथम वेदी पर सं. 1903 में प्रतिष्ठित प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ की अतिमनोज्ञ पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वेदिका पर अनेक तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी विराजमान हैं। पार्श्व भाग में स्थित दूसरी वेदिका पर भी अनेक जिनबिम्ब स्थापित हैं। यहीं अष्टधातु से निर्मित समवशरण की रचना भी है। दूसरी वेदिका पर भगवान शान्तिनाथ की श्वेत वर्ण की लगभग 1 फीट 9 इंच ऊँची सं. 2011 की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। यहां से क्षेत्र दर्शन को समीपस्थ पहाड़ी पर जाना होता है। पहाड़ी पर जाने के लिए लंबा सड़क मार्ग भी है। पैदल यात्री लगभग 250 सीढ़ियां चढ़कर पर्वत पर पहुंचते हैं। परिक्रमा-पथ की वंदना प्रारंभ करने के पूर्व यात्री को सर्वप्रथम एक चौकोर कक्ष मिलता है जहां वर्तमान में यात्रियों को शुद्ध जल देने की व्यवस्था है। यह भवन पूज्य श्री गणेश प्रसाद वर्णी की स्मृति स्वरूप एक पुस्तकालय के रूप में क्षेत्र पर निर्मित कराया गया था। परन्तु जिसमें पुस्तकालय आदि कुछ भी स्थापित नहीं है। वंदना का परिक्रमा-पथ यही से प्रारंभ होता है और यहीं आकर समाप्त होता है। पर्वतराज पर कुल 46 जगह दर्शन है। ये सभी जिनालय व छतरियां एक परिक्रमापथ पर स्थित हैं। परिक्रमापथ लगभग एक किलोमीटर से अधिक है। परिक्रमा व दर्शन बायीं ओर से प्रारंभ करते हैं। मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 5
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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