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___18. यह जिनालय प्रथम तल पर स्थित है। इस जिनालय में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की कृष्ण वर्ण प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में आसीन है। यह प्रतिमा लगभग 1.5 फीट ऊँची है तथा वि. सं. 2465 में प्रतिष्ठित है।
___19. सीढ़ियों से नीचे उतरने पर चार जिनालय एक पंक्ति में हैं। इनमें से प्रथम नेमिनाथ जिनालय है। इसमें भगवान नेमिनाथ स्वामी की सं. 2012 में प्रतिष्ठित श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा प्रतिष्ठित है। ___20. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में 1.25 फीट अवगाहना की आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा भी श्वेत. वर्ण की है।
21. अजितनाथ जिनालय- इस जिनालय में श्याम वर्ण की लगभग 2 फीट ऊँची भगवान अजितनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके पाद्मूल में प्रशस्ति नहीं दी गई है।
22. आदिनाथ जिनालय- इस जिनालय में मूलनायक भगवान आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। यह पद्मासन प्रतिमा लगभग 1.5 फीट अवगाहना की है। प्रतिमा का वर्ण श्याम है तथा वि. सं. 1858 की प्रतिष्ठित है। इस जिनालय में छोटी-छोटी अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी हैं।
23. ऋषभदेव जिनालय- इस जिनालय में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ की लगभग 4 फीट ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह जिनालय भी सं. 1858 का निर्मित है वेदिका पर दो चरण-चिह्न भी एक शिलापट पर उत्कीर्ण हैं।
24. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में भगवान चन्द्रप्रभु की दो प्रतिमाओं के अतिरिक्त भगवान शान्तिनाथ एवं भगवान पार्श्वनाथ की कृष्ण वर्ण प्रतिमायें सं. 1548 में प्रतिष्ठित है। भगवान शान्तिनाथ की वी. नि. सं. 2490 में प्रतिष्ठित है।
25. शान्तिनाथ जिनालय- इस जिनालय में गंधकुटी में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा विराजमान है।
26. इस मेरु सदृश्य जिनालय में चरण-चिह्न अंकित है।
27. चन्द्रप्रभु जिनालय (मेरु सदृश्य)- इस जिनालय में जीना चढ़ते हुए तीन परिक्रमा लगाने पर ऊपर भगवान चन्द्रप्रभु के दर्शन होते हैं। इसमें 1 फीट 2 इंच अवगाहना की श्वेत पाषाण की सं. 2008 में प्रतिष्ठित पद्मासन प्रतिमा आसीन है।
28. मेरु मंदिर के निकट ही मानस्तंभ अवस्थित है।
29. अभिनंदन नाथ जिनालय- चौथे तीर्थंकर भगवान अभिनंदन नाथ की श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा, जिसकी अवगाहना 2.25 फीट है, और जो वीर नि. सं. 2478 में प्रतिष्ठित है, इस जिनालय में विराजमान है।
30. चन्द्रप्रभु जिनालय- इसमें भगवान चन्द्रप्रभु की 1.25 फीट ऊँची श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। पाद्मूल में प्रशस्ति नहीं दी गई है। 48 - मध्य भारत के जैन तीर्व