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________________ 10. चन्द्रप्रभु जिनालय - यह एक बड़ा व भव्य जिनालय है, जिसमें मूलनायक के रूप में आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की 2 फीट से अधिक अवगाहना वाली श्वेत (धवल) प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इसके अलावा वेदिका पर अन्य अनेक जिन - प्रतिमायें भी विराजमान हैं जिनमें से अधिकांश धातु निर्मित हैं । 11. चन्द्रप्रभु जिनालय - इस जिनालय में लगभग 1.5 फीट अवगाहना की धवल पद्मासन प्रतिमा भगवान चन्द्रप्रभु की है। जिनालय में दो और जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं। 12. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा के अलावा दो और तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। 13. नेमिनाथ जिनालय - इस जिनालय में 1 फीट 8 इंच अवगाहना की कृष्ण वर्ण की पद्मासन मूर्ति भगवान नेमिनाथ की है। मंदिर में दो अन्य प्रतिमायें भी विराजमान हैं । 14. नेमिनाथ जिनालय - 1.5 फीट अवगाहना की भगवान नेमिनाथ की पद्मासन मूर्ति इस जिनालय में विराजमान है। 15. मानस्तंभ- मंदिर परिसर से बाहर एक चबूतरे पर लगभग 45 फीट ऊँचा विशाल मानस्तंभ बना है, जिसमें ऊपर चारों दिशाओं में तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं । धर्मशाला के समीप स्थित इन पन्द्रह जिनालयों की वंदना करने के पश्चात् श्रद्धालु सड़क पार कर एक सुंदर सरोवर के किनारे पहुँचता है। सरोवर के मध्य से एक पैदल रास्ता बना है, जो जल मंदिर होकर क्षेत्र की पहाड़ी तक जाता है। यहां कुल इकतालीस जिनालय हैं। क्षेत्र का वर्णन परिक्रमा पथ के अनुसार दिया जा रहा है। 16. जलमंदिर- तालाब के मध्य में स्थित होने के कारण इस जिनालय को जल मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस जिनालय में लगभग 2 फीट ऊँची अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा श्वेत वर्ण की वी. नि. सं. 2482 में प्रतिष्ठित हुई थी। जिनालय में परिक्रमा पथ भी है। इस जिनालय में 5 पाषाण की व 9 धातु निर्मित प्रतिमायें और विराजमान हैं । 17. समवशरण जिनालय - यह जिनालय तालाब के दूसरे किनारे पर स्थित है । इस जिनालय में भगवान पार्श्वनाथ जी के समवशरण की रचना की गई है। सबसे ऊपर मध्य में चारों दिशाओं में भगवान पार्श्वनाथ की फणावली युक्त प्रतिमायें विराजमान हैं। प्रतिमायें मनोहारी, सुंदर, कलात्मक, आनंददायक व अवगाहना में लगभग 4-5 फीट ऊँची पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं। आगे कुछ जीने चढ़ने के पश्चात् हम एक विशाल परिसर में पहुँचते हैं, अधिकांश जिनालय इसी परिसर में स्थित हैं । मध्य-भारत के जैन तीर्थ = 47
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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