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________________ उनके स्वप्न के अनुसार क्षेत्र पर जब खुदाई करवाई गई; तो उस स्थल पर एक जिनालय मिला। इस खुदाई में 13 जिन - प्रतिमायें भी मिली। जो आज इस क्षेत्र पर एक जिनालय में सुरक्षित रखीं हुई हैं । इस तीर्थ क्षेत्र पर सन् 1960 के दशक में छुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी के सान्निध्य में एक विशाल पंचकल्याणक एवं जिनबिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन किया गया था और नवनिर्मित पार्श्वनाथ जिनालय जिसमें चतुविशंति जिन तीर्थंकरों के भी भव्य जिनबिम्ब स्थापित किए गए थे उनका भी प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था । इसी तीर्थ क्षेत्र पर सं. 1987 में एक विशाल पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के सान्निध्य में संपन्न हुआ था। तभी यहां भगवान 1008 श्री पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया था। यह प्रतिमा शास्त्रोक्त अवगाहना वाली अतिभव्य व आनंद प्रदान करने वाली मनमोहक है। इस तीर्थ क्षेत्र की वंदना हम धर्मशाला से बाहर निकलकर एक परिसर में स्थित 15 जिनालयों से प्रारंभ करते हैं । 1. भगवान बाहुबली जिनालय - इस जिनालय में सामने ही भगवान बाहुबली की लगभग 6 फीट ऊँची श्वेत संगमरमर से निर्मित भव्य खड्गासन प्रतिमा विराजमान हैं। 2. आदिनाथ जिनालय - इस वेदिका पर लगभग 2 फीट अवगाहना की भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। वेदिका पर दो अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं। 3. नाग देवता पर आसीन लगभग 2.5 फीट अवगाहना की यह प्रतिमा अतिमनोज्ञ है वेदिका पर तीन अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी विराजमान हैं। 4. आदिनाथ जिनालय - इस जिनालय में मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा के अलावा पांच अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। 5. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में कृष्ण वर्ण की 2.2 फीट अवगाहना की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है। 6. पार्श्वनाथ जिनालय - इस जिनालय में मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ के जिनबिम्बों के अतिरिक्त 2 अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमायें भी आसीन हैं। 7. सुमतिनाथ जिनालय - इस जिनालय में पांचवें तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ की श्वेत वर्ण की लगभग 2 फीट अवगाहना वाली भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। 8. चन्द्रप्रभु जिनालय - इस जिनालय में मूलनायक भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा के अलावा 5 और जिन - प्रतिमायें विराजमान हैं । 9. पार्श्वनाथ जिनालय - मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ जी के अतिरिक्त दो और तीर्थंकर प्रतिमायें इस जिनालय में विराजमान हैं। ये प्रतिमा सं. 1881 में प्रतिष्ठित की गई थी । 46 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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