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सिद्ध क्षेत्र रेशंदीगिरि (नैनागिरि) “समवशरण श्री पार्श्व जिनंद, रेसंदीगिरि नैनानंद।
वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते वंदौ नित धरम जिहाज।।" निर्वाण कांड भाषा की भांति ही प्राकृत निर्वाण कांड में भी ऐसा ही उल्लेख है अर्थात् ऐसे रेशंदीगिरि सिद्धक्षेत्र की मैं भक्तिभाव पूर्वक वंदना करता हूँ, जो नेत्रों को आनंद प्रदान करने वाला है तथा जो भगवान पार्श्वनाथ की समवशरण स्थली है। यह तीर्थं क्षेत्र छत्तरपुर जिले में स्थित है।
यह सिद्धक्षेत्र छतरपुर-सागर मार्ग पर स्थित दलपतपुर ग्राम से बायीं ओर लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है। यह तीर्थं क्षेत्र दमोहहीरापुर मार्ग पर स्थित बक्सवाहा कस्बे से भी 25 किलोमीटर की दूरी पर है, व दोनों ओर से पक्के सड़क मार्ग से जुड़ा है। यह खजुराहो से 150 किलोमीटर, सागर से 60 किलोमीटर व टीकमगढ़ पपौरा से 85 किलोमीटर तथा द्रोणागिरि से भी लगभग 85 किलोमीटर दूर है। यहां आने के लिए बक्सवाहा व सागर से सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है।
इस तीर्थं क्षेत्र की प्राचीनता इस बात से स्वतः सिद्ध है कि यहां भगवान पार्श्वनाथ जी का समवशरण आया था। यहां से भगवान ने सांसारिक भव्य जीवों के कल्याण के लिए धर्मोपदेश दिया था। निर्विवाद रूप से इसीलिए इस तीर्थ का महत्व विगत 3000 वर्षों से तो है ही। 16वीं व 17वीं शताब्दी से क्रमशः मेघराज जी व पं. चिमना जी ने भी तीर्थ वंदना में इस क्षेत्र का उल्लेख किया है। एक शिलालेख के अनुसार जो मंदिर की दीवाल में लगा है, इस मंदिर का निर्माण 1109 में हुआ। एक विशाल जिनालय में जिसमें लगभग 3 वेदियां हैं, भूगर्भ से प्राप्त 13 प्राचीन मूर्तियां रखीं हैं। ये सभी 11वीं, 12वीं सदी की हैं। ये सब सामग्री इस क्षेत्र की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। इसी तीर्थ-क्षेत्र से ऋषिराज श्री वरदत्त, श्री मुनीन्द्रदत्त, श्री इन्द्रदत्त, श्री गुणदत्त व शायरदत्त जी भगवान पार्श्वनाथ के समय मोक्ष पधारे थे। ___यह तीर्थक्षेत्र एक नदी के किनारे सुरम्य प्राकृतिक वातावरण से घिरे शान्त व मनमोहक स्थल पर पठारी भू-भाग पर तालाब के किनारे स्थित है। इसीलिए साधकों ने इसे अपना साधना केन्द्र बनाया। यहां के नयनाभिराम सौंदर्य के कारण ही इसे लोग नैनागिरि कहने लगे। क्षेत्र के निकट प्रवाहित नदी धारा के मध्य में 50 फीट ऊँची एक पाषाण शिला है, इसे सिद्ध शिला कहा जाता है। इसके अतिरिक्त एक मील दूर जंगल में एक विशाल वेदिका है जो कोटि शिला के नाम से विख्यात है।
इस तीर्थ-क्षेत्र पर 55 भव्य जिनालय स्थित हैं। जिनमें जल मंदिर, समवशरण मंदिर व विशाल पार्श्वनाथ जिनालय अपना विशेष महत्व रखते हैं। आज से 140 वर्ष पहले बम्हौरी ग्राम के निवासी ब्या श्री श्यामले जी को एक स्वप्न आया था। जिसमें उन्होंने देखा कि इस क्षेत्र पर जमीन में अनेक जिन-प्रतिमायें दबी हुई हैं।
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 45