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गर्भगृह का द्वार सात शाखाओं वाला है। जिनमें पत्रलता, मंदारमाला, वाद्यवादन करती नृत्य युक्त आकृतियां एवं वर्तुलाकार गुच्छ रचनाओं का अलंकरण है। अन्य विषयों में बालक और शुक के साथ क्रीड़ा करती, पत्रलिखती, दर्पण में मुखदेख आभूषण पहनती, पैर से कांटा निकालती, माला लिये मेखला पहनती, अंगड़ाई लेती, वेणुवादन व कंदुक क्रीड़ा करती स्त्रियों की मूर्तियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जिनालय में तीन ओर के छज्जों में जैन आचार्यों की वार्तालाप करती मूर्तियां भी बनी हैं।
11. नेमिनाथ जिनालय- इस जिनालय में सं. 2037 प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा के पार्श्व भागों में सं. 1927 में प्रतिष्ठित भगवान सुपार्श्वनाथ व पार्श्वनाथ की सप्तफणी प्रतिमा विराजमान है।
12. पार्श्वनाथ जिनालय- यह जिनालय खजुराहो का प्राचीनतम व सर्वाधिक सुरक्षित जिनालय है। यह सभी जिनालयों में विशालतम व सर्वोत्कृष्ट है। स्थापत्य, कला और मूर्ति-अंलकरणों की दृष्टि से विशेष महत्व है। मंदिर के प्रदक्षिणा-पथ में मंद प्रकाश के संचार हेतु गवाक्ष बने है। पूर्वाभिमुख इस जिनालय के पश्चिमी प्रक्षेप में गर्भगृह के पृष्ठ भाग से जुड़ा एक स्वतंत्र देवालय भी इसमें बना है; जो इस जिनालय की एक अभिनव विशेषता है। इसमें 11वीं सदी की 4 फीट 2 इंच ऊँची भगवान ऋषभदेव की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह जिनालय 10वीं सदी में निर्मित किया गया था। खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर व इस मंदिर में पर्याप्त समानतायें देखने को मिलती हैं। दोनों ही मंदिर में कृष्ण-लीला के दृश्यों के साथ राम-सीता, हनुमान और बलराम-रेवती की मूर्तियां भी दिवालों पर उकेरी गई हैं।
पार्श्वनाथ जिनालय का निर्माण पूर्ण दक्षता से किया गया है। इस जिनालय की वास्तुकला लक्ष्मण मंदिर से श्रेष्ठ है। मंदिर में अप्सराओं एवं सुरसुंदरियों की श्रेष्ठतम मूर्तियां हैं। यह जिनालय प्रदक्षिणा पथ युक्त गर्भगृह, अन्तराल, महामंडप
और अर्धमंडल से युक्त है। यह जिनालय मूलतः ऋषभनाथ जी को समर्पित था। किन्तु संवत् 1917 में स्थापित काले पत्थर से निर्मित भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान होने के कारण इसे आज पार्श्वनाथ जिनालय के नाम से जाना जाता है। अर्धमंडप के ललाटबिम्ब में आदिनाथ की यक्षिणी चक्रेश्वरी तथा गर्भगृह की मूल प्रतिमा के सिंहासन पर आदिनाथ के वृषभ लांछन और पारंपरिक यक्ष-यक्षिणी गोमुख-चक्रेश्वरी के अंकन मंदिर के मूलतः आदिनाथ को समर्पित होने के अकाट्य प्रमाण हैं। गर्भगृह व मंडप की भित्तियों के प्रक्षेपों और आलों में जंघा पर क्रमशः नीचे से ऊपर की ओर छोटी होती गई मूर्तियों की तीन समानान्तर पंक्तियां बनीं हैं। इनमें अष्ट दिक्पालों, अम्बिका, शिव, विष्णु, ब्रह्मा, देवयुगल, लक्ष्मी, लांक्षन रहित जिनेन्द्र देवों, विद्याधर युगलों,
40 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ