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गंधर्व, किन्नरों की उड़ीयमान आकृतियां बनीं हैं। मंदिर के शिखर व बाह्य भाग पर भी चारों ओर मूर्तियां बनीं हैं। जिनमें कुबेर, राम, बलराम, अग्नि, कामदेव, शिव, विष्णु, ब्रह्मा, अम्बिका, चक्रेश्वरी, सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। यहां की अप्सरा मूर्तियां खुजराहो की सर्वश्रेष्ठ मूर्तियां मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के बाह्य भाग में कामक्रिया में रत युगलों की भी चार मूर्तियां हैं। यह जिनालय 1.2 मीटर ऊँची जगती पर निर्मित है। इस जिनालय में गर्भगृह, अन्तराल, महामंडप और अर्धमंडल के लिए अलग-अलग शिखर बने हुए हैं। गर्भगृह का सप्तरथ शिखर नागर शैली का है। अर्धमंडप की भीतरी छत खजुराहो के अन्य मंदिरों की तुलना में अधिक अलंकृत है। अर्धमंडप व गर्भगृह का प्रवेश-द्वार विभिन्न देव आकृतियों, अलंकरणों, नवगृहों व तीर्थंकर प्रतिमाओं से सज्जित है। आयताकार मंडप की भीतर की ठोस दीवालें 16 अर्धस्तंभों पर स्थित हैं। जिनमें पीठिकाओं पर तीर्थंकर प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के मंडप और गर्भगृह की दीवालों पर ऊपरी पंक्ति में गंधर्व और विद्याधरों की स्वतंत्र एवं युगल मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। यहीं व्याल की भी लगभग 45 मूर्तियां हैं। मंडोवर व गर्भगृह की भित्तियों पर 50 अप्सरा मूर्तियां भी हैं। मनमोहक शारीरिक चेष्टाओं और भाव-भंगिमाओं वाली ये मूर्तियां त्रिभंग या अतिभंग में हैं। यह मूर्तियां सुंदर और मांसल शरीर वाली, नाभिदर्शना, स्वस्थपयोधरों व तीखी भंगिमाओं वाली हैं तथा अलंकरणों से सज्जित हैं।
पूर्वाभिमुख यह जिनालय 70 x 35 फीट में बना है। कला सौष्ठव व शिल्प की दृष्टि से यह जिनालय श्रेष्ठतम है। प्रसिद्ध विद्वान फर्ग्युसन ने इस जिनालय के बारे में लिखा है- "वास्तव में समूचे मंदिर का निर्माण इस दक्षता के साथ हुआ है कि संभवतः हिंदू स्थापत्य में इसके जोड़ की कोई रचना नहीं है, जो इसकी जगती की तीन पंक्तियों की मूर्तियों के सौंदर्य, उत्कृष्ट कोटि की कला-संजोयन व शिखर के सूक्ष्मांकन में इनकी समानता कर सके।"
खजुराहो के कला विशेषज्ञ श्री रामाश्रय अवस्थी इस जिनालय की तुलना लक्ष्मण मंदिर से करते हुए लिखते हैं-लक्ष्मण मंदिर की अपेक्षा पार्श्वनाथ मंदिर की वास्तुकला अधिक विकसित है। उर्ध्व पंक्ति में विद्याधरों का चित्रण परवर्ती खजुराहो मंदिरों की एक विशिष्टता है, जिसका श्री गणेश इसी मंदिर से हुआ है।
द्वार के बायें खंबे पर 12 पंक्ति के उत्कीर्ण शिलालेख में इस जिनालय का प्रतिष्ठाकाल सं. 1011 लिखा है। मुख्यद्वार के ललाटबिम्ब पर दसभुजी चक्रेश्वरी गरुढ़ पर आसीन उत्कीर्ण की गई है। बायीं व दायीं ओर क्रमशः मकर वाहिनी गंगा, कूर्म वाहिनी यमुना के साथ चतुर्भुज द्वारपाल स्थित हैं। दसभुजी चक्रेश्वरी का चित्रण केवल यहीं देखने को मिलता है। त्रिमुखी ब्राह्माणी की
मध्य-भारत के जैन तीर्थ - 41