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________________ षट्भुजी चक्रेश्वरी व छोरों पर गजलक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमायें बनी हैं। अर्धमंडप की छत पर चारों ओर 16 मांगलिक स्वप्नों तथा द्वार-शाखाओं पर गंगा-यमुना की मूर्तियां बनी हैं। 14. चन्द्रप्रभु जिनालय- इस जिनालय में 2 फुट 7 इंच ऊँची भगवान चन्द्रप्रभु की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। यक्ष-यक्षिणी भी पार्श्व भागों में उत्कीर्ण हैं। 2/15. यह जिनालय तीन भागों में बंटा है। जो परस्पर मिले हैं। प्रथम भाग में मूलनायक भगवान धर्मनाथजी की व उनके पार्श्व में चन्द्रप्रभु व शान्तिनाथ की प्रतिमायें विराजमान है। प्रतिमायें क्रमशः 1981, 1865 व 1902 की श्वेत संगमरमर से निर्मित है। दूसरे भाग में 11-12वीं सदी की 5 फुट ऊँची विमलनाथ भगवान के साथ दो अन्य प्रतिमायें विराजमान है। सभी प्रतिमायें कायोत्सर्ग में है। तीसरे भाग में 9 सर्पफण युक्त सं. 1927 की छत्र सहित भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान है। दायीं व बायीं ओर चन्द्रप्रभु व नेमिनाथ भगवान की प्रतिमायें विराजमान हैं। इस परिसर से बाहर निकलने पर समीपस्थ एक दूसरे परिसर में भी 16 जिनालय स्थित हैं। जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है 3. पद्मप्रभु जिनालय- इस जिनालय में सन् 1981 में स्थापित भगवान पद्मप्रभु की पद्मासन मूर्ति विराजमान है। प्रवेश द्वार पर प्राचीन भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा उत्कीर्ण है। 4. ऋषभनाथ जिनालय- इस जिनालय में 3 फीट 6 इंच ऊँची पदमासन मुद्रा में भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप विराजमान है। नीचे गोमुख व चक्रेश्वरी की मूर्तियां यक्ष-यक्षिणी के रूप में उत्कीर्ण की गई है। परिकर में बाहुबली भगवान की मूर्ति भी उत्कीर्ण है। इस प्रतिमा में जटा-मुकुट व घुमावदार लटों वाली कंधे पर लटकती जटाओं का संयोजन अति सुंदर है। मूर्ति के मुख-मंडल के पीछे खिले हुए कमल एवं मुक्ता अलंकारों वाला प्रभामंडल अति मनोहारी है। मूर्ति की दो पाववर्ती रथिकाओं में भगवान सुमतिनाथ व अभिनंदन नाथ की क्रमशः 2 फीट 7 इंच व 2 फीट 10 इंच ऊँची पदमासन मूर्तियां भी बनीं हुई हैं। ये प्रतिमायें यक्ष-यक्षिणी युक्त है व 11वीं सदी की निर्मित है। प्रवेश द्वार पर वाराह व चामुंडा की त्रिभंग आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं। __5. 1981 में स्थापित श्वेत संगमरमर की भगवान शीतलनाथ, विमलनाथ व महावीर स्वामी की प्रतिमायें इस जिनालय में विराजमान है। जिनालय के प्रवेश द्वार पर तीर्थंकर-अभिषेक के दृश्यों को उकेरा गया है। 6. मल्लिनाथ जिनालय- इस जिनालय का प्रवेश द्वार अत्यन्त अलंकृत है इस जिनालय में तीर्थंकर मल्लिनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है। पार्श्व भागों में भी भगवान नेमिनाथ व मुनिसुव्रतनाथ की संगमरमर निर्मित प्रतिमायें विराजमान हैं। 38. मध्य-भारत के जैन तीर्थ
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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